मेट्रो पोलिटन सिटी में भूमि माफियाओं पर अंकुश जरूरी

सभी प्रमुख शहरों में भूमि माफियाओं पर अंकुश लगाना जरूरी है क्योंकि इनके पास जो धन है वह नगद है यह ना तो किसी बैक में अपना पैसा रखते है और न ही किसी तरह से कहीं लगाते है। अपने महलनुमा घरों में रहते है और वह सारे काम करते है जिससे देश की न्यायपालिका भरी पडी है। पुलिस की दलाली करते है , नेता की दलाली करते है और दूसरांे के मेहनत पर डाका डालते है वगैरह वगैरह।
आजकल एक नया फैशन है कि जब भी आप नये घर में जाते है और किराये पर लेते है तो सबसे पहले आपकेा ब्रोकर के पास जाना पडता है उसे कमीशन के रूप में किराये का आधा देना होता है, इसी तरह जिस मकान को वह दिलवाता है उस मकान के मालिक से आधा किराया कमीशन के रूप् में लेता है । यानि दोनों तरफ का किराया मिलाकर एक किराया हो जाता है। मान लिजिये अगर आपने दस हजार रूप्ये का कमरा लिया तो दस हजार रूप्ये उस दलाल के पास चले जाते है। अगर वह तीन मकान भी किराये पर दिलवाता है तो कम से कम तीस हजार रूप्ये जो दिल्ली जैसे शहर में न्यून्तम है उसे प्राप्त होता है और वह आलीशान मकान व आफिस में रहता है  । इस पर वह कोई टैक्स नही देता और न ही किसी योजना में जो सरकार की हो सहयोग करता है। इस तरह के करोडों लोग है जो देश के प्रमुूख शहरों में रहते है और बिना कुछ काम किये ही अरबों रूप्ये दबा रखे है जेा सरकार के पास होने चाहिये थे।
इसके बाद मध्यम दलाल आते है जो कि रिपेयरिंग का काम करते है और मकान ठीक कराते है, हर किरायेदार के जाने के बाद मकान में काम कराना पडता है उसके बाद नये ग्राहक मिलते है नही तो मकान खाली ही पडा रहता है इसका मुख्य कारण दलाली ही होता है। मकान किराये पर देने के बाद मालिक कभी देखता नही और दलाल के पास समय नही है कि वह उसे देखे ,उसके अनुसार उसका काम सिर्फ मकान के लिये किरायेदार देखने जैसा है।इसलिये हर किरायेदार के जाने के बाद रिपेयरिंग व रंगरोगन कराना पडता है। यदि सामान सहित दे रखा है तो सामान भी बदलने पडते है। यह सारा काम भी दलाल करता है जो कि किराये पर मकान को उठाते है। इसमें हर काम पर उनके काम करने वाले होते है जो कि कमीशन देते है और काम उठाते है। इनकी कमाई लाखों में प्रतिमाह होती है लेकिन कोई लेखा जोखा नही है। पुलिस की निगरानी में यह काम होता है और मौज उठाते है।
अब बात करते है उच्च वर्ग के दलाल की ,जो मकान खरीदने व बेचने का काम करते है। पुलिस महकमा , प्रशासनिक अधिकारी की रजामंदी से चलने वाला यह देश का सबसे बडा उघोग है जो कि बिना किसी कागजात के मौखिक चल रहा है। जिसमें कितना पैसा लगा है इसका किसी के पास रिकार्ड नही है। सभी के पास घन है और सभी बिना सरकार को टैक्स दिये मौज ले रहे है। पुलिस वाले मकान व जमीन जबरन इनके ईशारे पर कब्जा करवा रहें है, आकडों के अधिकारी अपना हिस्सा लेकर आंकडों में हेर फेर कर रहें है। भू माफिया करोडो कमा रहे है और जिनकी जमीन व मकान है वह कोर्ट के चक्कर लगा रहें है। कि शायद बाप दादा के समय से आ रही जमीन बच जाये और इस तरह के अधिकारियों से निजात मिले ।
किन्तु यह होगा कैसे , सरकार कोई नियम नही बनायेगी और न ही कानून कुछ करेगा , जिसपर लोगों की सुरक्षा का जिम्मा है वह ही उसे लूट रहा है। जिसपर राजस्व में कोई हेर फेर नही हो इसकी जिम्मेदारी है वह ही हेर फेर कर रहा है।जिस कोर्ट पर न्याय करने की जिम्मेदारी है वह ही प्रभाव में आकर गलत निर्णय दे रहा है और तो और आम आदमी पिस रहा है सरकार इसके प्रबंधन हेतु उपाय करे या योजना बनाये।
सरकार को चाहिये कि कोई ऐसी बेबसाइट बनवाये जिसपर मकान मालिक अपने किराये पर दी जाने वाली प्रापर्टी का विवरण डाल सके और किरायेदार इसी बेबसाइट से अपने लिये मकान खोजकर , उस मकानमालिक से बात कर सके। इसके अलावा मकान को बेचने व खरीदने केलिये भी इसी बेबसाइट पर व्यवस्था हो ,कोई रंगरोगन कराना चाहता हो , प्लंबर ,इलेक्टीसियन व अन्य के भी आंकडे आनलान हो जो कि कहीं से भी आनलाइन प्राप्त किये जा सके। इसी बेबसाइट का प्रयोग करने वाले को एक ओआईडी पी नंबर दिया गया हो जिससे न्यायालय में यदि जाना हो तो उसी ओआईडीपी वेरिफेशन के बाद मामले दर्ज हो एैसा प्रावधान हो। तभी इन काम पर अकुश लग सकता है और देश की चालीस प्रतिशत समस्या जो इसे लेकर है वह खत्म हो सकती है। सरकार खुद चाहे तो किराये का कमरा आनलाइन दे सकती है।

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