चुनाव आयोग के कार्यशैली पर नजर रखने की जरूरत

भारत भी अजीब तरह का देश है जहां देश का प्रतिनिधित्व कोैन करे इसका फैसला योग्यता नही पैसे के आधार पर होता है। चाहे वह प्रधान का चुनाव हो, ब्लाक का हो या फिर जिलापरिषद ,नगरप्रमुख का ,सभी जगह धन चलता है । नेता चुना जाता है और लूट का खेल शुरू होता है जो कि वैधानिक है एैसा सरकारें मानती है और कहती है कि जनता ने चुनकर भेजा है। यही हाल विधायक ,एमएलसी व सांसद के चुनाव में होता है। कुछ लोग रुपयों के बल पर सिस्टम को गुलाम बना लेते है और बार बार विधायक व सांसद हो जाते है।देश ने इसके लिये एक आयोग बनाया है लेकिन उसकी चलती नही.  वहां उसी की चलती है जिसके दम होता है और दमदार ही आगे बढ पाता है ऐसा वह आयोग मानता है। न तो उसके मान्यता देने का नियम है और न ही किसी को चुनाव लडने के लिये कहता है।

पिछले कुछ दशकों का आकलन करें तो चुनाव आयोग का पक्ष काफी सोचनीय रहा है। सुरसा की तरह मुंह खोलकर देश को खाने के लिये आगे बढता ही रहा है। सच तो यह है कि देश की हर जनता को सत्ता में भागीदार बनने का मौका मिलना चाहिये किन्तु जिस आधार पर चुनाव आयोग देना चाहता है वह नही होना चाहिये लेकिन वह धन की सीमा तय कर रहा है शिक्षा की नही । पढा लिखा समाज ही देश को तरक्की की राह पर ले जा सकता है।आज हर भारतीय किसी तरह से शिक्षा हासिल करके नौकरी पाना चाहता है और उसका ध्यान देश की ओर नही जा रहा है अगर शिक्षा को प्राथमिक कर दिया जाय और इंटर पास को पार्षद या प्रधान, ग्रेजुएट पास लोगों को विधायक या ब्लाक या जिलापरिषद सदस्य , मास्टर डिग्री पास लोगों को सांसद व एमएलसी बनाने का प्रयास करती तो शायद देश आगे जाता परन्तु वह इस पर घ्यान न देकर राशि पर ध्यान दे रही है। कहां रहा लोकतंत्र ? जिस तरह सरकार अपने कर्मचारियों का वेतन देखकर देश की मंहगाई का अंदाजा लगा लेती है उसी तरह यह आयोग भी चंद लोगों के साथ वार्तानूकूलित में बैठकर देश के नये नामानिगार खोज रहा है ।

वास्तव में देखा जाय तो हम कौन सी व्यवस्था इस देश को दे रहे है । हमाम में सारा तंत्र ही नंगा व बेशर्म है। जिस व्यवस्था की बात हम कर रहें है वह दूसरों पर हूकूमत करने के लिये बनाया गया। एक ऐसा तंत्र है जो कि तमाशा दिखाकर लोगों को लूट रहा है। हजारों करोड का गमन करने वालों को गेस्ट हाउस में रखा जा रहा है और दस रूपये की चोरी करने वाले को दस साल की कैद बिना किसी सजा के क्योंकि उसके पास वकील का देने के लिये पैसा नही है और सरकारी वकील के पास लाइन इतनी लम्बी है कि उसने हर किसी का मुकदमा लगवाने का ठीका नही ले रखा है । देश की शायद ही ऐसी कोई अदालत होगी जो यह जानती होगी कि कौन सा मुकदमा कितने साल से उसकी अदालत में चल रहा है। सारी सुविधा की बात की जाय तो यह उनलोगों के लिये देश में है जिन्होने चुनाव आयोग से मान्यता ले रखी है।बाकी जो बचती है जिसमें दंड है वह उसके लिये है जो वोटर है।

नयी सरकार को चाहिये कि चुनाव आयोग पर नजर रखे और वह कानून बनाये जिससे यह उसके दायरे में रहे अगर यह निष्पक्ष चुनाव नही करा सकता और प्रत्याशियों के परिवार की या उसकी सुरक्षा नही कर सकता तो इस आयोग की जरूरत ही क्या है। प्रत्याशियों का मूल्याकंन नही कर सकता तो इसकी जरूरत क्या है ? क्या देश के पास पैसा फालतू है जो कि इस विभाग को दिया जा रहा हैं।सरकार को सकारात्मक सोच रखते हुए एक से ज्यादा मामले में आरोपी लोगों को चुनाव के लिये अयोग्य घोषित करने का फामूर्ला प्रभाव में  लाना चाहिये ताकि देश की संसद व निचले सदन अपराध मुक्त हो सके। एक मामले की जो छूट हो वह भी सिर्फ सिविल मामले में हो , अपराधिक मामले में नही । फिलहाल देश को नये प्रधानमंत्री को काफी उम्मीदे है। मुमकिन है कि इस मामले पर इसी चुनावों से पहले कोई नया अध्यादेश आ जाये और माहौल भी बदले।

 

Leave a Reply