मणिपुर में अफीम की खेती है सारा बवाल

मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति कुकी है, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नश्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को वर्मा के पहाड़ी इलाके से लाकर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाया। आपको आश्चर्य होगा कि तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है, और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नही मानेंगे,अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, पर कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें वर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था। तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। सस्ते मजदूर के चक्कर में अपना नाश कर लेना कोई नई बीमारी नहीं है।
आप मणिपुर के लोकल न्यूज को पढ़ने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि कुकी अब भी अवैध तरीके से वर्मा से आकर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास कर रही है, पर पूर्णतः सफल नहीं है।आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म परिवर्तन कराया और अब लगभग सारे कुकी ईसाई हैं। और यही कारण है कि इनके मुद्दे पर एशिया-यूरोप सब एक सुर में बोलने लगते हैं।

 इन लोगों का एक विशेष गुण है। नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। क्या सरकार, क्या सुप्रीम कोर्ट? अपुनिच सरकार है! सरकार कहती है, अफीम की खेती अवैध है। ये कहते हैं, "तो क्या हुआ? हम करेंगे।" कोर्ट ने कहा, "मैतेई भी अनुसूचित जाति के लोग हैं।" ये कहते हैं, "कोर्ट कौन? हम कहते हैं कि वे अनुसूचित नहीं हैं, मतलब नहीं हैं। हमीं कोर्ट हैं। मैती, मैतेई या मैतई... ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। सदैव वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग। 

पुराने दिनों में सत्ता इनकी थी, इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब राज्य नहीं है, जमीन भी नहीं है। मणिपुर की जनसंख्या में ये आधे से अधिक हैं, पर भूमि इनके पास दस प्रतिशत के आसपास है। उधर कुकीयों की जनसंख्या 30% है, पर जमीन 90% है।
90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुकीयों की मांग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। यदि उनको यदि अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा। हमलोग शोषित हैं, कुपोषित हैं…।

 अब मैतेई भाई बहनों की दशा देखिये। जनसंख्या इनकी अधिक है, विधायक इनके अधिक हैं, सरकार इनके समर्थन की है। पर कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी ये अपना हक नहीं ले पा रहे हैं। क्यों? इसका उत्तर समझना बहुत कठिन नहीं है।यह सारी बातें फैक्ट हैं। अब आपको किसका समर्थन करना है और किसका विरोध, यह आपका चयन है। मुझे फैक्ट्स बताने थे, वह मैंने कर दिया।

फिलहाल अब जो मणिपुर की स्थिति है वह वैसे ही है जैसे कि कभी बंगाल में हुआ करती थी जिनके पास जमीन थी उनकी जायदाद गरीब लोग लूट लेते थे उनकी हत्या कर देते थे और यही अब मणिपुर में हो रहा है जिनके पास जमीन है उनकी जमीन लूट ली जा रही है बोलने पर उनके परिवार की हत्या कर दी जा रही है और यह आज से नहीं चल रहा है यह आजादी के बाद से चला आ रहा है जिस पर अब रोक लगाने की जरूरत है नहीं तो मणिपुर एक दिन भारत के नशे से गायब हो जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे पी ओ के गायब हो गया।

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