स्वराज्य मिला लेकिन स्वदेशी ?

 लोकमान्य शतकोत्तर पुण्यतिथि

“स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और वह मैं लेकर रहूंगा।” यह सिंह गर्जना करने वाले वीर पुरुष बाल गंगाधर तिलक  थे जिनकी पुण्यतिथि को आज हम सब मना रहे हैं । 1 अगस्त 1920 को इस राष्ट्र नायक ने विदाई ली थी। श्री तिलक लोगों के मान्यता प्राप्त नेता थे इसलिए उन्हें ‘लोकमान्य’ यह उपाधि दी गई। तिलक जी की मृत्यु पर महात्मा गांधी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’  और पंडित नेहरू ने ‘भारतीय क्रांति के जनक’ की उपाधि दी थी । देश पर राज करने वाले ब्रिटिश काल में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उनको ‘भारतीय असंतोष का जनक’ कहते थे |

बाल गंगाधर तिलक वैसे अनेक गुणों का समुच्चय थे-

  • अभ्यास वृत्ति –  विद्यार्थी जीवन से गीता रहस्य लिखने तक दिखती है| तिलक जी की किसी विषय के तह में जाकर वाचन, मनन, चिंतन, चर्चा करके मत बनाते थे| और उस पर अपनी राय प्रकट करने की उनकी अनोखी शैली थी|
  • देश भक्ति – वैसे तिलक जी को गणित का प्राध्यापक बनना था लेकिन अपना देश परतंत्र है और देश का पुत्र इस नाते से मेरा प्रथम कर्तव्य इसे मुक्त कराना है ऐसा समझकर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े|
  • जुझारू प्रवृत्ति – यह उनकी विशेषता थी जिससे उन्होंने अंग्रेजों से लड़ने का सामर्थ्य हासिल किया|
  • सुधारक तिलक – उनके जीवन में जाति भेद निर्मूलन यह एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था| सभी व्यक्तियों को वे एक मानव की तरह देखते थे| 24 मार्च 1918 को कांग्रेस अधिवेशन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा ‘अस्पृश्यता यदि भगवान को मान्य होगी तो मैं भगवान को नहीं मानूंगा|’ स्वतंत्रता समर यह केवल कुछ लोगों द्वारा हासिल होने वाली चीज नहीं है बल्कि हर एक व्यक्ति का योगदान इसमें जरूरी है| इसलिए सभी को साथ लेकर उन्होंने देश भक्ति का भाव जागरण किया| उन्होंने बाल विवाह जैसी कुरीतियों का घोर विरोध किया और इसे प्रतिबंधित करने की मांग की | विधवा पुनर्विवाह के भी आग्रही समर्थक थे|
  • जबान के धनी – किसी को वचन दिया तो उनका उसे पालन करने की पूर्ण कोशिश रहती थी| 
  • शिक्षा जगत में योगदान – पुणे में 1 जनवरी 1880 को न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना श्री आगरकर, श्री चिपलुणकर के साथ किया | उन्होंने बिना वेतन वहां पर पढ़ाना स्वीकार किया बाद में पुणे में उच्च शिक्षा हेतु फर्ग्युसन महाविद्यालय की स्थापना की जहां वे गणित और संस्कृत पढ़ाते थे|
  • पत्रकार और पत्रकारिता –  उन्होंने दो अखबार प्रारंभ किये ,1881 में मराठी दैनिक ‘केसरी’ और अंग्रेजी दैनिक ‘मराठा’ ये अखबार सामाजिक परिवर्तन स्वतंत्रता आंदोलन के प्रेरणा स्रोत थे| 1881 से 1920 तक 40 साल में उनके 513 अग्रलेख प्रसिद्ध हैं|
  • समाजसेवी- 1896 में महाराष्ट्र में बड़ा अकाल पड़ा अनेक स्थानों पर उन्होंने लोगों के लिए सार्वजनिक भोजनालय प्रारंभ किया | 
  • कल्पक वृत्ति – लोगों में देशचेतना के भाव के जागरण हेतु घर घर में होने वाली गणेश पूजा को सार्वजनिक गणेशोत्सव का स्वरूप दिया और उत्सव में लोगों के  प्रबोधन हेतु  व्याख्यानमाला आयोजित करते रहे| १८९५ में शिवाजी स्मरणोत्सव आंदोलन किया| रायगढ़ में शिवाजी की समाधि के पुनर्निर्माण के लिए थोड़े ही समय में २०००० रूपये इकठ्ठा करके शिवाजी जन्मस्थान का जीर्णोद्धार कराया|
  • गजब स्मरण शक्ति – १९०८ में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुलचंद्र चाकी और खुदीराम बोस  के द्वारा किए गए बम हमले का समर्थन किया और लेख लिखे जिसकी वजह से उन्हें म्यांमार स्थित मांडले जेल में 6 वर्ष की कारावास की सजा हुई| यहां पर उन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक ग्रंथ पेंसिल से लिखा इस ग्रंथ में कर्मयोगी तत्व पर  बल दिया| समाज में रहकर समाज हित के लिए कार्य करना यही कर्मयोग है| तिलक जी के मुताबिक गीता यह लड़ने की प्रेरणा देने वाला ग्रंथ है,निराश मन को आशा की ओर ले जाने वाला, मरणासन्न समाज को संजीवनी देने वाला ग्रंथ है| बाद में ग्रंथ लिखने के पश्चात अंग्रेज सरकार ने यह ग्रंथ जप्त किया उसमें लिखे एक-एक शब्द की जांच की जा रही थी कि उस में कहीं राजद्रोह है या नहीं या बगावत की प्रेरणा तो नहीं इसकी जांच पड़ताल अंग्रेज कर रहे थे| तिलक जी की कारावास से मुक्ति के पश्चात एक महीना हुआ था लेकिन उनका हस्तलिखित ग्रंथ उन्हें प्राप्त नहीं हुआ अनेक लोगों को चिंता होने लगी तो तिलक जी ने कहा व्यर्थ चिंता करते हो मेरा दिमाग अभी ठीक है सारा ग्रंथ मेरे दिमाग में है अगर हस्तलिखित नहीं मिला तो सिंहगढ़ पर बैठ कर दो महीने में सारा ग्रंथ लिख लूंगा |कितनी गजब स्मरण शक्ति और कितना आत्मविश्वास उनमें था बाद में कुछ समय बाद वह हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्त हुआ उसमें कुछ आक्षेप ही नहीं मिला बाद में वह छप कर तैयार हुआ|
  • हंसवृत्ति- अनेक स्नेही जनों से उनका विवाद हुआ लेकिन स्नेह और तत्व इनमें उन्होंने अंतर रखा| आगरकर न्या.रानाडे, न्या. गोखले, प्रोफेसर जिंसीवाले ये कुछ उदाहरण हैं| उन्होंने तत्व और व्यक्ति अलग करके उनसे इंसानियत का पालन किया|
  • ग्रंथकार- उन्होंने ओरायन,आर्कटिक होम आफ वेदास, गीता रहस्य, पंचांग पद्धति ग्रंथ लिखे| यह ग्रंथ उनके संस्कृत, गणित, खगोल शास्त्र के विस्तृत अध्ययन और चिंतन का परिणाम हैं|

स्वतंत्रता आंदोलन के उस कालखंड में पंजाब के लाला लाजपत राय पश्चिम बंगाल के बिपिन चंद्र पाल और महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक इनकी लाल बाल पाल की त्रिकुटी स्वतंत्रता का अलख जगाने के लिए देश में प्रसिद्ध थी| उनकी राजनीतिक कर्म भूमि कांग्रेस थी किन्तु उन्होंने अनेक बार कांग्रेस की नीतियों का विरोध भी किया | ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग बार-बार दोहराना क्रांतिकारियों को समर्थन देना ऐसा अनेक मुद्दों पर मवालपंथी कांग्रेसी उनका विरोध करते रहे परंतु उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया| उनकी कलम ने अंग्रेजों की जड़ें हिला कर रख दी थीं|

पंजाब में जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन पर निहत्थे लोगों पर अंग्रेजों ने जिस ढंग से बर्बरता बरती थी उस घटना से लोकमान्य काफी दुखी और चिंतित रहने लगे इससे भी निराश भी हुए| उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे कमजोर होता गया और आज १ अगस्त के ही दिन  100 वर्ष पूर्व उन्होंने अंतिम सांस ली| उनकी अंतिम यात्रा में करीब 200000 लोग इकट्ठे हुए थे|

यह बाल गंगाधर तिलक ही थे जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष को ‘स्वराज्य’ का नारा देकर जन-जन से जोड़ दिया| उनके ‘स्वराज्य’ के नारे को ही आधार बनाकर वर्षों बाद महात्मा गांधी ने ‘स्वदेशी आंदोलन’ का आगाज किया था| तिलक जी अपने समाचार पत्रों में विदेशी बहिष्कार, स्वदेशी का उपयोग, राष्ट्रीय शिक्षा, स्वराज आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण विषयों को आधार बनाया था|

जब स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर महाविद्यालय के छात्र थे और उन्होंने कुछ सहपाठियों को लेकर अंग्रेज द्वारा निर्मित इंग्लैंड के कपड़ा मिलों में बनी विदेशी वस्त्रों की होली जलाने का कार्यक्रम 7 अक्टूबर 1905 को पुणे में किया तो उस कार्यक्रम में श्री तिलक उपस्थित थे और  केसरी अखबार में स्वदेशी आंदोलन के बारे में उन्होंने लिखा और बाद में भी लिखते रहे।

‘स्वदेशी’ का सामान्य अर्थ है ‘अपने देश का’ अर्थात ‘अपने देश में निर्मित’| देश के भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न, निर्मित या कल्पित पदार्थों, वस्तुओं, नीतियों व विचारधारा आदि को स्वदेशी कहते हैं|

आप जरा सोचिए जब हम अपने देश में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग करेंगे तो देश के लाखों करोड़ों लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे, देश की पूंजी देश के बाहर नहीं जाएगी, भारतीयों के जीवन में खुशहाली, सामर्थ्य, वैभव, संपन्नता व आत्म सम्मान बढ़ेगा| आज लोकमान्य जी की पुण्यतिथि के दिन उनका स्मरण कर स्वदेश निर्मित वस्तुओं का इस्तेमाल करने का संकल्प लेना; देश को शक्ति सामर्थ स्वावलंबन सुरक्षा के मार्ग पर प्रशस्त करना होगा।

 तेरा स्मरण हमेशा प्रेरणास्पद हमें हो,

तेरा गुणकीर्तन ध्वनि सुरम्य हमारे कानों पर पड़े।

स्वदेश के हित चिंतन हमेशा हमें पसंद हो,

 तेरे सम हमारी काया देशकार्य पर पड़े।।

One thought on “स्वराज्य मिला लेकिन स्वदेशी ?

  1. तिलक जी पर आपने संक्षेप में सटीक निष्कर्ष निकाला है ..तत्व और व्यक्ति अलग-अलग करके पालन करना आज के समय में मानव-प्रवृत्ति में यह लुप्त होते जा रहा ..तिलक जी सच्चे अर्थों में क्रन्तिकारी थे मन.वचन व कर्म से .

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