हमारे समाज की असंगठित स्थिति ही हमारी दुर्बलता का कारण रही है यहीं कमी हमें हजार वर्षों से गुलाम बनाये हुए थी । निराकरण यही था कि सम्पूर्ण समाज जागृत और संगठित हो संघ के अथक प्रयास से अब हिंदू जागृत हो रहा है बहुत तपस्या हुई बहुत पीढ़ियां गली हजारों की जवानी चढ़ी तब जाकर आज विराट संगठन खड़ा है ।संघ शाखा के पहले दिन से लेकर प्राथमिक प्रथम द्वितीय तृतीय वर्ष कराते तक उस पर कई प्रचारकों का समय लग चुका होता है एक शाखा में गृहस्थ कार्यकर्ताओं के श्रम को जोड़ दिया जाए तो संघचालक कार्यवाह मुख्य शिक्षक शारीरिक प्रमुख बौद्धिक प्रमुख व्यवस्था प्रमुख की सघन ऊर्जा और तमाम संसाधन उस पर लगते हैं। सम्पूर्ण संगठन की सभी इकाईयां उसे तैयार करने पर अपनी पूरी उर्जा झोंक देती है केवल यही नहीं गहरा मार्गदर्शन गहरी प्रेरणा गहरा चरित्र गहन अध्ययन लगातार उसको व्यक्तिगत संपर्क में रखने के लिए जीवनदानी कार्यकर्ताओं की एक लंबी कड़ी उसको संस्कारित करती है किसी मनुष्य के जीवन की कितनी कीमत होगी आप कितनी कीमत लगाएंगे एक ऐसे त्यागी मनुष्य की जिसने पढ़.लिखकर अपना सम्पूर्ण जीवन भारत माता की पूजा में चढ़ा दिया।
कभी आपने सोचा है एक अच्छा स्वयंसेवक तैयार करने में संघ को कितनी शक्ति लगानी पड़ती होगी। अनुमानतः कितना खर्च करना पड़ता होगा। उसके प्रशिक्षण के लिए कितनी ऊर्जा, संसाधन, मनुष्यों का समय लगाना पड़ता होगा ;संघ में प्रशिक्षण हुए बगैर कुछ नहीं हो सकता आरम्भिक दौर में प्राथमिक शिक्षा वर्ग कराया जाता है आठवीं से ऊपर के या कम से कम १४ वर्ष से ऊपर के विद्यार्थी उसमें सम्मिलित हो सकते हैं यह कुल एक सप्ताह का होता है जिसमें आधारभूत जानकारी दी जाती है।आप इन सात दिनों में बाहर नहीं जा सकते और सुनिश्चित दिनचर्या में ही रहना होता है देश भर के सभी जिलों या विभागों ;संभवतः एक विभाग में तीन जिले होते हैं। यह विद्यालयों के दीर्घावकाश के समय आयोजित किया जाता है इससे प्रतिदिन चलने वाली शाखाओं को गण शिक्षक मिलते हैं ।
प्राथमिक संघ शिक्षा वर्ग के बाद प्रथम वर्ष में जाने का आग्रह होता है जिससे मुख्य शिक्षक का निर्माण होता है । गण शिक्षक हो चाहे मुख्य शिक्षक नियमित शाखा जाने वालों को ही संघ का दायित्व मिलता है। द्वितीय वर्ष के शिक्षण के पश्चात उसे प्रवासी कार्यकर्ता बनाया जा सकता है जो प्रवासी कार्यकर्ता के रूप में जनपद स्तर पर कार्य कर रहा हो उसे तीसरे वर्ष को जाने की अनुमति मिलती है ।व्यवस्था वाले प्रशिक्षक शिक्षार्थी सुरक्षा बौद्धिक शारीरिक में लगे लोग सभी अपना समय शुल्क गणवेश खरीदने का खर्च और आवागमन का व्यय स्वयं वहन करते है संघ चंदे और रसीद नहीं कटाता प्रत्येक प्रान्त में वर्ष के प्रत्येक गर्मी की छुट्टियों में प्रथम एवं द्वितीय संघ शिक्षा वर्ग लगता है जहां से उत्तम कोटि के सेनापति निकलते हैं योग्यता और गुणों से भरा संगठक तैयार किया जाता है। आरम्भिक वर्षों में प्रशिक्षण की अवधि ४० दिनों की हुआ करती थी फिर वह एक महिने की हुई अभी २० २० और २५ दिनों की अवधि में प्रशिक्षण दिया जाता है ।
तृतीय वर्ष एक ही स्थान पर होता है नागपुर में संघ का जन्म.स्थल होने के कारण ऐसा सोचा गया कि नागपुर की उस पवित्र मिट्टी का स्पर्श सभी तृतीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवकों को हो। नागपुर देश का सबसे उष्ण स्थान है वर्ग में लघु.भारत की अनुभूति होती है वह आपको सहज ही राष्ट्र.बोध करा देती है पूरे देश के कोने.कोने से आये स्वयंसेवकों से भेट होती है दुनियां भर में रह.रहे भारत.वंशी भी इस अन्तिम प्रशिक्षण के लिए आते हैं संघ का समस्त शीर्ष नेतृत्व वहां कुछ समय के लिए रहता है परिचय करता है और आपको जानता समझता है आप भी चिंतन के उस स्तर पर उतरने लगते हैं हर वर्ग आप में उत्तरोत्तर गुणात्मक विकास करता है । यदि आपने तृतीय वर्ष कर लिया तो फिर दैहिक भौतिक और दैविक तीनों ही ताप आप शांत कर लेते हैं कष्ट आपको कभी न सतायेंगे और भारत का हरेक नागरिक आपको भाई लगने लगेगा यह संघ की सर्वोच्च स्थिति है। इसका परीक्षण तो दायित्व.निर्वहन से ही होगा ना! इस वर्ग का महत्व समझने के लिए इतना कहना पर्याप्त होगा कि संघ से संबंधित समस्त संगठनों का शीर्ष नेतृत्व तृतीय वर्ष प्रशिक्षित हैं।
आप इस तरह एक अच्छा तृतीय वर्ष स्वयंसेवक तैयार करना कितना दुरूह दुष्कर और श्रम साध्य कार्य है यह जान गये होंगे । एक तृतीय वर्ष प्रशिक्षित कार्यकर्ता किसी कर्नल से ज्यादा प्रशिक्षित, प्रतिबद्ध, समर्पित और ध्येयनिष्ठ होता है इसके पीछे कुछ लोगों का त्याग, बलिदान,आदर्श और गहरी प्रेरणा होती है उसे आग में या पानी में डाल दो, आसमान में उछाल दो, वह समत्व भाव से भारत माता के लिए काम करता है भारत माता के प्रति उसकी आराधना भाव में कतई कमी नही आएगी।
सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ती है। सूर्य उदय देखने का अवसर मिलता है। शाखा मे शारीरिक मानसिक व्यायाम करने का अवसर मिलता है। शाखा मे जाने पर तनाव और अवसाद दूर होता है। शाखा मे जाने पर नए लोगो से संपर्क होता है । शाखा मे हमारा बौद्विक स्तर ऊपर होता है। हमारा बोलने का ढंग उच्चारण अच्छा होता है । हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। शाखा मे रम जाने वाले स्वयंसेवक का नैतिक और मानवीय मूल्यों का विकास होता है। हमको इसमें भेद्वभाव और जातिवाद दूर होता है । हम अनुशासन सीखते है ।राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होते हैं।मुझे गर्व है मैं स्वयंसेवक हूँ। शाखा में जाने से वेद पुराण उपनिषद का ज्ञान प्राप्त होता हैं।रामायण और महाभारत का सम्पूर्ण इतिहास का ज्ञान होता हैं।शाखा में जाने से देशभक्ति की भावना निर्माण होती हैं।शाखा में जाने से राष्ट्र और समाज के लिए निःस्वार्थ समर्पित सेवा करने की मानसिकता बनती हैं।स्वभाव और आचरण में निर्मलता का संचार होता हैं।संघ की शाखा में आने से आपके बच्चे आत्मनिर्भर और स्वालंबी बनेंगे।शाखा मे आने से बच्चों में अच्छे संस्कार प्राप्त होते हैं।
प्रतिज्ञित.प्रशिक्षित कार्यकर्ता की यह पहचान है जो भारत माता के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन दांव पर लगा दें जो राष्ट्र निर्माण के लिए हर क्षण सतत प्रयत्नशील रहे जिसकी निष्ठाएं असंदिग्ध हो संभवत कोई व्यवस्था ऐसे कार्यकर्ताए ऐसे देशभक्त नागरिक तैयार नहीं कर सकती जैसा संघ की रीति.नीति से निकले कार्यकर्ता होते हैं यही संघ की उपलब्धि है ।