तीन तलाक : एक कुप्रथा का अंत

मुस्लिम समाज में तीन तलाक को लेकर जिस प्रकार से महिलाएं प्रताड़ना का शिकार हो रही थी, आज उससे छुटकारा मिल गया। देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक के मामले में अभूतपूर्व निर्णय देते हुए इस कुप्रथा पर छह महीने के लिए रोक लगादी है। न्यायालय का यह निर्णय वास्तव में मुस्लिम समाज की महिलाओं के उत्थान के लिए स्वागत योग्य कदम है। पांच न्यायाधीशों के एक पैनल ने इस पूरे मामले की सुनवाई की। तीन जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। तीन तलाक के मामले में न्यायालय के निर्णय से मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए अच्छे दिन की शुरुआत कहा जा रहा है। हालांकि मुस्लिम धर्म गुरुओं ने कई बार तीन तलाक की असामाजिक प्रथा को जायज ठहराने की वकालत करते हुए कहा था कि यह मुसलमानों के मजहब का आंतरिक मामला है, लेकिन यह भी सच है कि कई मुस्लिम देशों ने इस कुप्रथा को समाप्त करके विकास के मार्ग पर कदम बढ़ाए हैं। इसमें सबसे बड़ा तर्क यह भी है कि जब मुस्लिम देश तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने का कदम उठा सकते हैं, तब गैर मुस्लिम देश भारत में इस प्रथा को आसानी से समाप्त किया जा सकता है। सवाल यह भी है कि अगर यह मुस्लिम समाज के धर्म का हिस्सा है, तब इसे मुस्लिम देशों में समाप्त क्यों किया गया। वास्तव में यह कोई प्रथा है ही नहीं, यह तो मुस्लिम समाज में वर्षों से चली आ रही एक ऐसी कुप्रथा थी, जिससे मुसिलम समाज की महिलाएं प्रताड़ित हो रही थीं। इस्लामिक देशों की तरह ही भारत में भी प्रताड़ना का शिकार हुई महिलाओं ने इस कुप्रथा के विरोध में आवाज भी उठाई, लेकिन मुस्लिम समाज के ठेकेदारों द्वारा उनकी दर्दनाक आवाज को अनसुना कर दिया गया। मुस्लिम महिलाओं के दर्द को भारतीय जनता पार्टी ने महसूस किया और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में इसको मुद्दा बनाया। कहा जाता है कि इस चुनाव में इन प्रताड़ित महिलाओं का भाजपा को भरपूर समर्थन मिला, जिसके परिणाम स्वरुप भाजपा को अपेक्षा से भी अधिक सफलता मिली। इस बात से यह संकेत भी मिलता है कि मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए तीन तलाक की समस्या बहुत बड़ी थी। इसकी आग भी अंदर ही अंदर सुलग रही थी, लेकिन किसी ने इससे छुटकारा पाने की पहल नहीं की। लिहाजा यह समस्या और विकरालता की ओर ही बढ़ती चली गई। इसके बाद मुस्लिम समाज की महिलाओं ने काफी हिम्मत करके सर्वोच्च न्यायालय में इस उम्मीद के साथ याचिका लगाई कि उन्हें यहां से न्याय अवश्य ही मिलेगा। और हुआ भी ऐसा ही। यह सच है कि भारतीय संविधान में महिलाओं को जो अधिकार प्राप्त हैं, वह अधिकार मुस्लिम महिलाओं को नहीं थे। मुस्लिम महिलाओं ने संवैधानिक अधिकारों की मांग के लिए न्यायिक लड़ाई लड़ी, जिसमें एक विजय उन्होंने प्राप्त कर ली।
मुस्लिम समाज में तीन तलाक के दंश को भोगने वाली महिलाओं ने आज बहुत बड़ी विजय प्राप्त कर ली। मुस्लिम समाज की यह महिलाएं मामले को न्यायालय लेकर गर्इं। जिनमें तलाकशुदा शायरा बानो ने तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की। इसी प्रकार हावड़ा की इशरत जहां को फोन पर तलाक दे दिया। जाकिया सोमन ने तो बाकायदा इसके विरोध में हस्ताक्षर अभियान चलाया और प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भी दिया। जयपुर की आफरीन रहमान तथा उत्तरप्रदेश के रामपुर की गुलशन परवीन भी ऐसी ही महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने हिम्मत का काम किया है और मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। और देश से तीन तलाक की कुप्रथा का अंत हो गया।

Leave a Reply