रामराज्य की परिकल्पना

          सबको साथ लेकर चलता हुआ भारत, सर्वत्र बढ़ता हुआ भारत, रामराज की नई कथा लिखने की दिशा में बढ़ चला है ।रामराज एक परिभाषित पद है ।लोक कल्याण और लोक आराधना के लिए समर्पित शासक से रामराज्य प्रारंभ होता है और सगुण सकारात्मक तथा नैतिक भावना से पूर्णता को प्राप्त करता है। एक ऐसा आदर्श स्थिति, जिसमें कोई उपेक्षित वंचित और तिरस्कृत नहीं होता, जिसमें अंतिम व्यक्ति की आवाज  बिना किसी व्यवधान के पहुंचती और सुनी जाती है।

यह व्यवस्था केवल रामायण और रामचरितमानस में कही गई व्यवस्था नहीं है ।इसे भारत के इतिहास में अनेक काल खंडों में दोहराया गया है ।इसके लिए मेगास्थनीज की इंडिका फाहमान द्वारा हर्षवर्धन के  वेतन समुद्रगुप्त और स्कंद गुप्त के शासन के पौराणिक आख्यान ,ललितादित्य के महान शासन के राज तरंगिणी के आख्यान ,छत्रपति शिवाजी के हिंदू पद पादशाही के सुशासन ,स्वराज के दस्तावेज की ओर भी ध्यान देना होगा ।इतिहास में मृत इन काल खंडों का ध्यान रखते हुए हमें सबूत स्वराज और सूरज की उस व्यवस्था का भी स्मरण करना होगा जिसमें मैकाले को भी भारत में भिखारी नहीं दिखाई देता, फिर अक्षम नहीं दिखाई देते।

गोस्वामी तुलसीदास पर रामराज्य की कल्पना करते हुए राजा के लिए कुछ गुणों का उल्लेख किया है ।याद आलोक वेद द्वारा वित्त नीति पर चलना, धर्मशील होना प्रजा पालक होना ,सज्जन एवं उद्धार होना , स्वभाव का दृढ़ व दान शील होना आदि श्रीराम में आदर्श राजा के सभी गुण विद्यमान हैं उनको अपनी प्रजा प्राणों से अधिक प्रिय है।प्रिय जन पूजन अर्चन सब के प्रति राम का व्यवहार आदर्श एवं धर्म के अनुकूल है ऐसे राम राज्य में विषमता टिक नहीं सकती और सभी प्रकार के दुखों से प्रजा कारण मिल जाता है महात्मा गांधी ने जिस रामराज्य की कल्पना की है ।वह मूल आधार भी तुलसीदास जी के राम राज्य परिकल्पना ही है निश्चय ही यह एक आदर्श शासन व्यवस्था है जिसका मूलाधार लोकहित और मानवतावाद है।

महात्मा गांधी इस रामराज्य के स्वप्न को स्पष्ट करते हुए कहते हैं रामायण का प्राचीन आदर्श राम राज्य में संदेश सच्चे लोकतंत्र में से एक है मेरे सपनों का रामराज्य राजा और निर्धन दोनों के समान अधिकारों को सुनिश्चित करता है मैं जिस रामराज्य का वर्णन करता हूं वह नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है वस्तुतः रामराज्य का यह स्वप्न ज्ञात इतिहास में नहीं है हर कालखंड में संपूर्ण राजा एवं प्रजा का स्वप्न रहा है इस स्वप्न को चरितार्थ करता हुआ जो महान कालखंड भारतीय इतिहास में सदा सर्वदा इस तरह का विषय रहा वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम राज्य है। 2 अगस्त 1934 को अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में गांधी जी ने कहा था कि मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिए समान अधिकार उचित करती है फिर 2 जनवरी 1937 को हरिजन में उन्होंने लिखा मैंने रामराज्य का वर्णन किया जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है रामराज्य का लक्ष्य पाने के लिए महात्मा गांधी ने ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को प्रतिपादित किया जो सामाजिक लक्ष्य को पाने के लिए पूंजीवाद के दान हेतु प्रयोग पर आधारित था। महात्मा गांधी ने कहा ट्रस्टीशिप का मेरा सिद्धांत अस्थाई नहीं है इसमें कोई भी छल कपट नहीं है इसको दर्शनशस्त्र तथा धर्म की मंजूरी है।

आज दुनिया के सामने विविध प्रकार के संकट हैं दुनिया एक दूसरे की धरती और धन कब जाने के लिए प्रयासरत है कोई कह सकता है कि इसमें श्रीराम क्या करें श्रीराम ने तो आदर्श स्थापित किए श्रीराम ने जो किया वह वह है कि जो उत्तर और दक्षिण तक इस देश को जोड़ते हैं जो अयोध्या से लेकर धनुष्कोड़ी तक जन-जन को जोड़ते हैं वह व्यक्ति के श्रेष्ठ आचरण को सामने रखकर जोड़ते हैं वह स्वयं आने का एक कठिनाइयां धारण करते हैं लेकिन देवी अहिल्या को मुक्त करते हैं वह खुद सीता योग में दुखी है करुण क्रंदन करते हैं लेकिन माता शबरी के दुख को दूर कर उन्हें शांति देते हैं आहार देते हैं सम्मान देते हैं उन्हें वैसा ही सम्मान देते हैं जैसा वह कौशल्या सुमित्रा और कैकई को देते हैं यह श्री राम हुआ है जिन्होंने अयोध्या में प्रजा और सेना नदी किनारे तक छोड़ने आई उनसे भी श्रीराम करते हैं यह श्रीराम तो वह है जो अपने ही राज्य केवट से लड़ाई करते हैं कि नाव पर बैठा हूं और उस पर ले जाओ वह समाज के अंतिम सिरे पर खड़े व्यक्ति को अपने हृदय से लगा लेते हैं।

वैसे देखा जाए तो राम राज्य में मनुष्य और प्रकृति सभी निज धर्म का पालन करते हैं वे सभी कल्याण के उदासीनता होकर त्याग करते हैं उनमें संग्रह की प्रवृति नहीं है इसी प्रकार के रामराज्य की कल्पना हमारे यहां है जिसमें एक राजा से अपेक्षित है कि वह प्रेम सद्भावना शांति व सुशासन की स्थापना करें एक राजा के रूप में जिस धर्म और मर्यादा की स्थापना श्री राम करते हैं महात्मा गांधी ने उसी भारत की कल्पना हिंद स्वराज में की है इसी स्वतंत्र भारत की स्थापना के लिए महात्मा गांधी ने संग्राम किया उनके आयुक्त श्री राम ही जैसे थे उधारी राम असुर निकंदन राम सा और करुणा के प्रतीक श्री राम है गिलहरी और खर दूषण मारी सुपनखा आदि को न्याय देने वाले श्रीराम इन सब के प्रति श्रीराम करूंगा मैं हैं जब रावण से युद्ध होता है और आसुरी सभ्यता से विभीषण को उस युद्ध में रावण की साज-सज्जा उसके आयुक्त उसकी गतिशीलता उसकी तकनीकी को देखकर से उत्पन्न होता है इसका कारण  विभीषण भी उसकी भौतिकवादी आसुरी सभ्यता का था उनके मन में संशय हो जाता है कि श्रीराम उनका संसए दूर कर पाएंगे कि नहीं तब श्रीराम उनका संसया दूर करते हैं क्योंकि श्रीराम के लिए इसमें दया सत्य पवित्रता मर्यादा नैतिकता धर्म साहस इत्यादि सद्गुण ही युद्ध के आयुध है श्री राम सिद्ध करते हैं कि युद्ध कौशलों को संकल्प से जीता जाता है आयुक्त से नहीं।

फिलहाल रामराज की विधिया धर्म सम्मत मर्यादा अवधारणा केवल राजा या शासक के कर्तव्यों का विचार नहीं है अभी तो एक ऐसी समग्र राज्य व्यवस्था की निर्मित है जिसमें सामाजिक जीवन का प्रत्येक कोना धर्म के चार चरण सत्य सोच दया और दान पर अवलंबित होता है यह एक ऐसी चतुष्पादा व्यवस्था है जो राम और समाज के सभी आधारभूत घटकों को सच्ची श्रद्धा से ओतप्रोत करते हुए सब की सुनता सुनिश्चित करती है या एक ऐसा ईश्वरी राज्य है जो अकाल मृत्यु या अन्य सभी प्रकार की पीड़ा से मुक्त होगा सभी सर्वतोभद्र का कल्याण देखेंगे कोई दिन दुखी दरिद्र नही होगा सभी शिक्षक बोध संपन्न होंगे और सभी प्रकार की सुविधा से युक्त होंगे।

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