कांग्रेस में हिंदू धर्म स्थलों का विरोध क्यों ?

आजादी के  समय इस बात के लिए कहा गया कि जो रियासत भारत में विलय होना चाहती है वह भारत में विलय हो जाए, इसके लिए एक समय तय किया गया ।हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ समय रहते भारत में अपनी विलय की संतुति नहीं दे सके। जूनागढ़ 8 नवंबर 1947 को भारत में मिल सका, उस समय सरदार पटेल वहां पर दौरा करने के लिए गए तो उन्होंने सोमनाथ मंदिर को टूटा फूटा देखा,जब सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार के कार्यक्रम की बात की तो पंडित जवाहरलाल नेहरू जो उसे समय प्रधानमंत्री थे ने इसका विरोध किया। यही नहीं जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जो तात्कालिक राष्ट्रपति थे उन्होंने उसे कार्यक्रम में हिस्सा लेने की बात कही तो पंडित नेहरू ने उन्हें लिखित मना किया कि वह इस कार्यक्रम में न जाए, इससे कांग्रेस पर गलत असर जाएगा। आज भी वही हो रहा है ,कांग्रेस ने राम मंदिर आमंत्रण ठुकरा करके इस कार्य की पुनरावृत्ति की है जिसकी चर्चा चारों तरफ हो रही है।

देखा जाए तो आजादी के बाद से ही कांग्रेस में मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति थी, जिसके कारण कांग्रेस मुसलमानों को परेशान नहीं करना चाहती थी। वह अपनी छवि साफ सुथरी उनके अंदर बनाए रखना चाहती थी ।इसको लेकर के उन्होंने कई कार्यक्रम भी कर रखे थे जैसे शत्रु संपत्ति का और कस्टोडियन प्रॉपर्टी का चलन शुरू कर रखा था, देश का एक बड़ा भूभाग मुसलमान को देने के बाद भी उसने मुसलमानों को भारत में रखा यह उसकी नीति का एक हिस्सा था। उसे यह विश्वास था कि सोमनाथ मंदिर भी किसी दिन राम जन्म भूमि, कृष्ण जन्मभूमि व काशी की तरह विवादित होगा तो उसका लाभ कांग्रेस को मुसलमानों के पक्ष से हमेशा मिलता रहेगा।

वर्तमान समय में देखा जाए तो लगभग 5 दशक बाद हिंदू समाज राम के नाम पर एक हुआ है और पूरा देश राममय है। विदेशों में भी उसकी गूंज सुनाई दे रही है, ऐसे में हिंदू भावनाओं को आहत करने का काम कांग्रेस ने किया है और भाजपा को यह मौका दिया है कि वह इस बात को कहे कि हिंदू विरोधी विचारधारा ही कांग्रेस का जन्म है जिसे अब हिंदुओं को समझ लेना चाहिए। बंटवारे की राजनीति को समझ लेना चाहिए ,राम मंदिर अभी तक क्यों नहीं बना था इस बात को समझ लेना चाहिए, मथुरा और काशी में क्या अड़चनें आएंगी, इस बात को समझ लेना चाहिए और भारतीय जनमानस को इसी पर आगे विचार करके कांग्रेस को मौका देना है कि नहीं देना है ,इस पर विचार करना चाहिए क्योंकि नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस ने हमेशा हिंदू भावनाओं को आहत किया है।

गौर तलब हो कि मंदिर के ऐश्वर्या पर मुस्लिम आक्रांताओं की हमेशा से कुछ दृष्टि रही जिसके कारण 17 बार उसको लूटा गया। 1706 में औरंगजेब ने इस मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त करने का आदेश दिया क्योंकि लूट के बार-बार  होने के बाद भी आस्था के कारण लोग इसे पुनः बना लेते थे। लगभग ढाई सौ साल बाद सरदार पटेल ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया और लोगों से चंदा इकट्ठा किया। इसके लिए पटेल ने मंत्रिमंडल से मंजूरी ली ,मौलाना आजाद के विरोध के बाद भी कार्यक्रम को जारी रखा। बाद में यह बात महात्मा गांधी तक गई तो उन्होंने अपना समर्थन दिया और कहा कि जन सहयोग से इस मंदिर का पुनर्धार होना चाहिए।

यह कार्य इतना आसान नहीं था 1948 में गांधी जी की और 1950 में पटेल जी की मृत्यु हो गई उसके बाद यह कार्यक्रम रुक गया लेकिन नेहरू को यह पता था कि पटेल जी के चले इस आंदोलन को रोक पाना उनके लिए सहज नहीं होगा। इसके बाद इस काम की जिम्मेदारी के एम मुंशी ने ली और उन्होंने कोशिश की की सभी का सहयोग मिले लेकिन ऐसा हुआ नहीं वामपंथी दल पहले ही मंदिर निर्माण के विरोध में थे और सरकार भी अपने धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखना चाहती थी इसलिए वह साथ देने को तैयार नहीं थी क्योंकि यह पूरी तरह से हिंदू नव पुनर्जागरण का काम था। 2 मार्च 1951 को राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इस कार्यक्रम में उपस्थित होने की अपनी सहमति दी जिसे लेकर नेहरू से उनका काफी दिनों तक विवाद चला रहा। आज भी इस कार्यक्रम पर कांग्रेस का जोर इसलिए नहीं चलने वाला है क्योंकि जब वह सत्ता में थे तब वह कुछ नहीं कर सके तो अब तो उनकी सत्ता भी नहीं है राम जन्मभूमि बनेगा और उनके अरमानों पर बनेगा।

फिलहाल राम जन्मभूमि कार्यक्रम में हिस्सा न लेकर के कांग्रेस में यह बता दिया है कि वह मुसलमानों की हिमायती है और हिंदुओं से उसका कुछ लेना  नहीं है, आजादी के बाद से अब तक जो भी कार्य उसने किए हैं वह मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए किया, हिंदू भावनाओं को आहत किया है जिसका लाभ अब उसे आगे मिलने वाला नहीं है यह बात खुलकर सामने आ रही है।

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