महिला विकास एवं कल्याण कार्यक्रम सशक्त बने

पिछले कुछ सालों से महिलाओं को आर्थिक रूप से सदृढ बनाने वाले महिलाओं के कार्यक्रम का प्रचार नही हो रहा है , सभी सरकारों को लगता है कि अब उन्हे नौकरी मिलने लगी है और वह शिक्षा ग्रहण कर रही है इसलिये उनके लिये किसी भी तरह के प्रचार करने की जरूरत नही है। लेकिन उनकी जरूरत का क्या जिससे वह आर्थिक रूप से सदृढ हो सके, इस पर मौन क्यों है, कुछ उपाय किये जाने चाहिये। जनधन योजना में जो खाते खुले वह उन औरतोंbanner04 के है जो कभी बैंक तक नही आ सकीं अगर ग्रामीण डाकघरों ने अपना दायित्व निभाया होता तो वह आज इस मुकाम पर आने से पहले बचत खाता धारक होती और हजारों रूपये जमा कर चुकी होती । जो कि उनके पति शराब व जुए में अब तक लूटा चुके है। हैरत की बात है कि सरकार यह बात भूल गयी कि देश में आज भी 70 प्रतिशत महिलायें गांव में निवास करती है और 50 प्रंितशत महिलाओं के पास फूटी कौडी भी नही होती जिसे वह अपना कह सके।

2अक्टूबर 1993 में देश भर के 1.32 लाख ग्रामीण डाकघरों के जरिये यह योजना लागू की गयी थी जिसमें महिलाओं को बचत खाता खोलने के लिये प्रोत्साहित किया जाता था और उनके खाते में तीन सौ रूपये यदि साल भर में रहता था तो सरकार 25 रूपये अपनी तरफ से उनको देती थी। जो उस पर ब्याज के अतिरिक्त होता था। मार्च 1997 तक इस योजना में कुल 265 करोड जमा हुए और 246 लाख खाते खोले गये। सरकार का मानना था कि इससे ग्रामीण महिलायें अधिकार सम्पन्न होगी और घरेलू संसाधनों पर आर्थिक नियंत्रण रख सकेंगी। लेकिन अब जबकि यह योजना बंद नही हुई है और प्रतिवर्ष 10 खाते भी नही खोले जा रहे है। इसका मुख्य कारण यह है कि जागरूकता ही नही है। इस खाते को लेकर सरकार की तरफ से कोई नीति नही है और न ही किसी तरह का दबाब ग्रामीण डाकघरों पर है।

जागरूकता की बात करें तो 20 अगस्त 1995 को 200 विकास खंडो में शुरू हुई इंदिरा महिला योजना की हालत भी एैसी ही है। यह सबसे निचले स्तर की महिलाओं के लिये बनाया गया था , जो संगठित होकर अधिकार सम्पन्न बने और निर्णय लेने की भागीदारी कर सके। इस योजना की असली ताकत उसके संगठित महिला समूह की है जो हर योजनाओं के समन्वय का काम करती है। सभी गरीब महिला को सरकारी योजनाओं को लेकर जागृति करने व सदृढ बनाने का काम इनके द्वारा होता था। हर आंगनबाडी क्षेत्र में इसका एक कार्यालय होता था जो छोटे छोटे समूहों में इस काम को करता था। 2001 तक 115 इंदिरा महिला ब्लाक सोसायटी का गठन किया गया था और 7,500 महिला समूह गठित हुए थे लेकिन उसके बाद से इस पर सरकारों ने चुप्पी साध ली और उसका हल यह निकला कि अब न तो नये समूह बन रहे है न ही जन जागरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस योजना के लिये सरकार जो भी खर्च कर रही है वह ब्यर्थ जा रहा है । इसका मुख्य कारण यह है कि योजनाओं को जारी तो कर दिया जाता है लेकिन लक्ष्य निर्धारित नही किये जाते।

इससे पहले 1986-87 में महिला विकास निगम की योजना बनायी गयी थी, जिसके तहत महिला उदयमियों की पहचान करने तकनीकी सलाह देने , धन मुहैया कराने , उत्पादों के विपणन ,महिला सहकारिता कोबढावा , सदृढ बनाने , प्रशिक्षण देने व कार्यो में प्रेरक भूमिका निभाने के लिये हुआ था। आंध्र प्रदेश , बिहार , गुजरात , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , जम्मू कश्मीर , कर्नाटक , केरल , मध्य प्रदेश , महाराष्ट, उडीसा, पंजाब , तमिलनाडु , उत्तर प्रदेश , पश्चिम बंगाल और केन्द्र शासित राज्यों में महिला विकास निगम गठित हो गये। राष्टीय विकास परिषद के अनुसार 1992-93 में योजना राज्य क्षेत्रों को सौप दी गयी । किन्तु आश्चर्य की बात यह है दो और राज्य झारखंड व छत्तीसगढ बने जिसमें अभी तक पुष्टि नही हो पायी कि यह निगम बना भी है या नही। इसके अलावा तेलंगाना में तो इस मसले पर कुछ हुआ ही नही है। इस निगम के जो हालात है वह यह है कि कोई भी राज्य इस पर घ्यान देने को तैयार नही है। हर जगह पुरूषों का वर्चस्व बना है कहीं भी महिलाओं को अपने से कुछ करने की आजादी नही है।

इसी तरह 1996-97 में 3,122 कामकाजी महिलाओं को हास्टल उपलब्ध कराने के लिये 28 अतिरिक्त हास्टलों की सुविधा प्रदान की गयी थी। इसके बाद उनकी संख्या 800 हो गयी जिससे 56,000 महिलाओं को लाभ मिल रहा है लेकिन इसके बाद देश में प्राइवेट गल्र्स होस्टल तो बढे किन्तु सरकारी नही बढ सके, आज कामकाजी महिलाओं की संख्या कई लाख में पहुच गयी है किन्तु सरकार उनके रिहाइश के बारे में नही सोचती। जिससे महिलाओं को आवास को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। सबसे खास बात यह कि सरकारी हास्टलों में उनके बच्चों को देखने के लिये सुविधा थी जो प्राइवेट में नही है। इसी तरह पहले अल्पावधि आवासीय सुविधा उपलब्ध करायी जाती थी जो कि 1969 से चालू थी जिसमें पारिवारिक समस्याओं , मानसिक तनाव , सामाजिक उत्पीडन , शोषण व अन्य किसी कारण से पीडिता के लिये थी जिसमें 20-30 लोग रह सकते थे जिसे महिलाओं को आश्रम व पुर्नवास सुविधा का दर्जा दिया गया था वह अब विलुप्त सा हो गया है । 2001 तक देश में सिर्फ 350 अल्पावधि आवास गृह थे और उसके बाद कुछ ही बढ पाये जिन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है।

ऐसा कहा जाता है कि सरकार महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव को बढावा देने के प्रयासों को काफी महत्व देती है। इलेक्टानिक , मुद्रित और फिल्म जैसे माध्यमों से महिलाओं और बालिकाओं की इच्छा छवि प्रस्तुत करने के लिये समविन्त मीडिया अभियान तैयार किया गया है, स्त्री पुरूष समानता के बारे में प्रचार किया जाता है। किन्तु समानता अब असमानता को रूप लेती जा रही है । स्त्री को आज भी सिर्फ वस्तु के रूप में पुरूष समाज देखता है इस सोच में परिवर्तन नही है। अनगिनत अपराध हो रहे है और अपराधी सरकार की इस मंशा को कि दोनों समान है को आधात पहुंचा रहे है।

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