देशभक्ति की अपेक्षा नहीं, किन्तु देश का विरोध तो अनिवार्यतः अस्वीकार्य

28 फरवरी, 2017 को रामजस कालेज में जिस प्रकार का अभिनय हुआ उससे भारत की धरा से प्रेम करने वाला कोई भी व्यक्ति उद्वेलित हो सकता है। भारत के विरुद्ध विषवमन करने वाले जेएनयू के छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालयों में भाषण देने के लिए आमन्त्रित करना स्वयं में इस बात का परिचायक था कि डीयू के शान्त परिवेश को अराजक बनाने की ओर अग्रसर होना। विडम्बना यह है कि भारत के विरुद्ध अधिक से अधिक कठोर बातें करना आज के फैशन में सम्मिलित होता जा रहा है। जिन विद्यार्थियों के हृदय में देश-प्रेम की भावना का उदय किया जाना चाहिए उन्हें देश के विरुद्ध आन्दोलित किया जा रहा है। आखिर इस कुटिल अभिनय के पीछे कौन-सी शक्तियाँ कार्य कर रही हैं जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंक के विरुद्ध देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर सैनिक की पुत्री अपने पिता के गुणों के विपरीत उन देशद्रोहियों की भाषा बोलने लगी। आखिर देश के प्रति विराग का यह भाव क्यों पनप रहा है? क्या भारत जैसे देश के अतिरिक्त उन्हें किसी अन्य देश में इतनी स्वतन्त्रता प्राप्त होने की सम्भावना दिखाई दे रही है? थोड़ी देर के लिए यदि यह भी मान लिया जाए कि कुछ अल्पायु विद्यार्थी जो किशोरावस्था से अभी निकल ही रहे हैं उनमें चिन्तन का अभाव हो सकता है, किन्तु इनका समर्थन करने वाले अध्यापक, बुद्धिजीवी और कतिपय वरिष्ठ राजनेता क्या राष्ट्र की परिभाषा से अज्ञान हैं? सच तो यह है इनमें से कुछ लोग आत्मप्रकाशन के लिए ऐसा कर रहे हैं और कुछ राजनेता जिनका अस्तित्व समाप्ति की ओर बढ़ रहा है वे चर्चा में बने रहने के लिए और येन-केन प्रकारेण अपना कैरियर बचाने के लिए संघर्ष के इस स्वरूप का सहारा ले रहे हैं। यदि शासन व्यवस्था भय, भूख और भ्रष्टाचारमुक्त होने की दिशा में तेजी से बढ़ रही हो तो इन लोगों को अपने पूर्व-स्वीकृत कृत्यों की स्वतन्त्रता से वंचित होना पड़ रहा है। भ्रष्ट आचरण न कर पाने की पीड़ा से ये लोग मुक्त नहीं हो पा रहे हैं जिसके कारण इन्हें नकारात्मक तथ्यों का सहारा लेना पड़ रहा है। सत्य यही है कि नकार में कुछ सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है। सकारात्मक कार्यों को सदैव सिद्ध होना पड़ता है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे गैलीलियो को इस सत्य को प्रमाणित करने में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी कि पृथ्वी गोल है। यदि वह उस नकार के साथ रहता तो उसे अपने प्राण नहीं गंवाने पड़ते। ईश्वर को नकार देना सरल है क्योंकि उसके अस्तित्व को सिद्ध करने में पर्याप्त परिश्रम की आवश्यकता है। उसी प्रकार भारत माता के अस्तित्व को नकारने में ये लोग सरलता का अनुभव करते हैं क्योंकि उसके अस्तित्व को सिद्ध करने में जिस परिश्रम की आवश्यकता है ये लोग उसके योग्य ही नहीं हैं।

इन लोगों के साथ यदि राष्ट्र के हित से जुड़ी बातें की जायें तो इन्हें अपनी योग्यता पर अविश्वास होने लगता है और उतने ही उच्च स्वर में उसे नकारने का प्रयास करते हैं। इन्हें लगता है कि यदि तथ्यों पर विश्वास किया जायेगा तो ये भी समाज का अंग बन जायेंगे जो ये कभी चाहते ही नहीं हैं। ये लोग समाज को अशान्ति की ओर ले जाने के लिए तत्पर हैं ताकि इनकी अलग से पहचान बन सके। ये लोग आतंकवादियों, देशद्रोहियों और भ्रष्टाचारियों के वक्तव्यों के समर्थन में अपने समूह और विचारधारा के अन्य लोगों से पिछड़ना नहीं चाहते। उनके लिए सहानुभूति प्रदर्शित करने में इन्हें गौरव का अनुभव होता है। देश की रक्षा के लिए सीमा पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिकों की मृत्यु पर इन्हें कोई खेद नहीं होता लेकिन हमारे सैनिकों पर छिपकर प्रहार करने वालों के लिए इनके आँसू आँखों की कोरों पर निकलने के लिए तैयार रहते हैं। किन्तु इन्हें यह भी याद दिलाना चाहता हूँ कि इन लोगों से देश की जनता देशभक्ति की अपेक्षा तो बिल्कुल नहीं करती है लेकिन देश के विरुद्ध यदि कुछ बोला जायेगा तो वह अनिवार्यतः अस्वीकार्य है।

विश्वविद्यालयों में यदि राजनीति का यह विकृत रूप इस विधि से समाविष्ट रहा और ऐसे विचारों का अध्यापन करने वाले और पोषण करने वाले प्राध्यापक इतनी ही तत्परता दिखाते रहे तो वे देश को उमर खालिद और कन्हैया कुमार जैसे देश के लिए घातक विद्यार्थी ही देंगे। देश के टुकड़े करने वालों को पता नहीं क्यों विस्मृत हो जाता है कि देश 1947 ई. में ही टुकड़ों में बंट गया था और बंटा हुआ टुकड़ा आज भी विद्यमान है। जिन्हें टुकड़े चाहिए वे उन टुकड़ों का उपयोग कर सकते हैं, वे वहाँ जाकर रह सकते हैं किन्तु उन्हें इस सुखद कल्पना से सदैव निराशा ही हाथ लगेगी कि वे अब भी इस देश के टुकड़े कर सकते हैं। परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं और अब इस दिशा में उन्हें कार्य करने का परिणाम भी सोचना चाहिए कि आज हमारा देश देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत सशक्त सैनिकों की सुरक्षा में पूर्णतः सुरक्षित है। कांग्रेस एवं अन्यान्य राष्ट्रविरोधी धारणा रखने वाले दलों को कुछ सीमा तक राष्ट्रभक्तों ने समाप्ति की ओर पहुँचा दिया है और उनके शेष अस्तित्व को वे स्वयं अपने इन्हीं कृत्यों से समाप्त करने के लिए तत्पर हैं। उन्हें ध्यान रखना होगा कि भारत देश की जनता में अब राष्ट्रभाव जागृत हो चुका है और राष्ट्रद्रोह की बातें करने वालों को यही जनता चन्द्रशेखर आजाद और भगतसिंह के रूप में क्षत-विक्षत करने वाली है।

Leave a Reply