समाजवादी पार्टी के एक कार्यक्रम में कुछ लोग मंच पर हैं, शेष दरी पर हैं।सम्भव है आप इसके बहाने समाजवादी पार्टी या अखिलेश यादव जी की आलोचना करें,पर यह पूरी तरह ठीक नहीं होगा।दरअसल कोई इससे मुक्त नहीं।कोई भी व्यक्ति जब प्रभावशाली हो जाता है तो उसके अंदर विशेष होने का भाव स्वतः आ जाता है। जो लोग इसे सामंतवाद बता कर इसके विरुद्ध उतरे,वे भी सत्ता पाते ही यही व्यवहार करने लगते हैं।यह अहंकारी भाव गलत भले हो,पर पूर्णतः प्राकृतिक है। यह हर जीव में होता है,और हमेशा रहेगा।मन के अंदर से यह अहंकारी भाव आध्यात्म से समाप्त हो सकता है,राजनीति से कभी नहीं होगा।
दरअसल सामंतवाद का विरोध उसे समाप्त करने के लिए नहीं होता,बल्कि स्वयं सामंत बनने के लिए होता है।शोषण के विरोध का लक्ष्य शोषण को समाप्त करना कभी नहीं रहा, लक्ष्य रहा शोषण करने का अधिकार पाना… शोषण का विरोध करने वाला हर नेता एक ही स्वप्न देखता है कि किसी भी तरह हम इस लायक हो सकें कि औरों का शोषण कर सकें।सारी लड़ाई दरी से उठ कर कुर्सी तक पहुँचने की है।न कभी दरी हटेगी, न कभी कुर्सी खाली रहेगी। खुद को गरीब का बेटा बता कर प्रमोट करने वाले कुछ वर्षों में ही खरबपति हो जाते हैं।जाति को समाप्त करने की बात करने वाले अपनी जाति का नेता बनकर घोर जातिवादी हो जाते हैं।कम्पनी मालिकों के विरुद्ध मजदूरों की लड़ाई लड़ने वालों ने अपनी कम्पनियां खड़ी कर लीं,किसानों को उनका हक दिलाने की बात करने वाले कम्पनियों को जमीन दिलाने की दलाली करने लगे। यही आंदोलनों का सत्य है।
बहन मायावती जी जिस अधिकारी से अपने जूते ठीक करवाती थीं,वह किसी राजा का बेटा नहीं था बल्कि किसी पिछड़े/ दलित तबके से आया युवक ही था।लालू जी जिन अधिकारियों से खैनी मलवाते थे वे किसी सामंत परिवार से नहीं आये थे, अपितु वे भी सामान्य घरों के लड़के थे जिन्होंने कड़ी तपस्या के बाद वह स्थान पाया था।पर ये लोग इसी को अपनी उपलब्धि मानते रहे, और इनके भावुक समर्थक इसपर तालियां बजाते रहे।किसी ने यह समझा ही नहीं कि शोषण का विरोध करने वाले शोषण की एक नई और घिनौनी परम्परा शुरू कर रहे हैं।लोग समझ नहीं पाए कि उनको ठगा जा रहा है ।इस देश का दुर्भाग्य यह है कि यहाँ अधिकांश लड़ाइयां फर्जी मुद्दों पर लड़ी जाती हैं|
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी ही ऐसे संगठन हैं जो समग्र हिन्दू समाज की बात करते हैं देश की बात करते हैं और जन मानस उनकी बात पर भरोसा भी करते हैं इसीलिए मोदी जी सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर आसीन हैं।आज ऐसा कुछ नहीं हो रहा है जो पहले नहीं हुआ या आगे नहीं होगा।दुनिया ऐसी ही चलती है और चलेगी।जो अपना जुगाड़ लगाने में सफल होगा वह कुर्सी पर बैठेगा और नीचे बिछी दरी भरी रहेगी।बात बस यह है कि लड़ने वाला यह लड़ाई केवल अपने लिए लड़ता है,और जनता समझती है कि मेरे लिए लड़ रहा है।लोकतंत्र दरअसल जनता को मूर्ख बनाने का औजार है…।