साल 10 साल ,चुनाव दर चुनाव ,वादे होते हैं तरक्की के सपने दिखाए जाते हैं। औद्योगिकरण को उम्मीदों और बदलाव की चासनी में लपेट कर पेश किया जाता है। ढांचागत सुविधाएं बढ़ती है यूपी को एक्सप्रेस का प्रदेश भी कहा जाने लगता है पर अधिकतर बड़े उद्योग और निवेश नोएडा और गाजियाबाद तक सिमट कर रह गए ।प्रदेश के बाकी क्षेत्र अभी औद्योगिकीकरण की राह ताक रहे क्यों? अन्य क्षेत्र के लिए प्रयास तो किया । इनसे इंकार भी नहीं किया जा सकता पर उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिल ना सके।
उद्योगपति कहते हैं कि ढांचागत सुविधाएं औद्योगिक विकास का सिर्फ मार्ग प्रशस्त करते हैं।लेकिन वास्तविक औद्योगिकरण तो विजन से होता है ।असंतुलित औद्योगिक विकास पर मतदाता चुनाव में राजनीतिक दलों से हिसाब जरूर मांगेगा। जहां तक औद्योगीकरण की बात है डिफेंस कॉरिडोर ने उद्योगों के विकास की उम्मीदें जगाई है ।इससे बहुत हद तक प्रदेश के कई इलाकों में अब पिछड़ापन दूर होगा, पर यह भी उतना ही सच है कि औद्योगिक विकास पूर्वांचल ,रुहेलखंड, बुंदेलखंडी पिछड़े हुए हैं और निवेश की बाट जोह रहे हैं। उद्यमियों का कहना है कि इससे में उद्योग और निवेश लाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व नौकरशाही और उद्योग पतियों को एक मंच पर आना होगा ।एक दूसरे से संवाद बढ़ाना होगा।
यूपी के औद्योगिक अर्थव्यवस्था में उद्योगों की प्रधानता रही है इसमें से ज्यादातर औद्योगिक इकाइयां लघु व मध्यम आकार की है ।जिसमें प्रदेश में करीब 76लाख लोग काम करते हैं ।राज्य की औद्योगिक इकाइयों का योगदान 49 प्रतिसत है ।अधिकतर औद्योगिक व्यवस्था में परंपरागत तौर पर आधारित उद्योगों की बड़ी तादाद है ।जिसमें पीतल ,लकड़ी के फर्नीचर और खिलौने से संबंधित उद्योग हैं।कारपोरेट कंपनियां नाम मात्र की है ।
अस्सी के दशक में उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास की तेज धार का मुख्य कारण केंद्र व राज्य के कांग्रेसी सरकारों द्वारा किया सहयोग था। सार्वजनिक निवेश और निजी क्षेत्र को दिए गए प्रोत्साहन थे ।मगर। वह रायबरेली व अमेठी के आसपास तक ही सीमित थी हालांकि 1951 के बाद उदारीकरण के दौर में सार्वजनिक निवेश पर आधारित औद्योगीकरण टिक नहीं पाया। पिछले 25 वर्षों में औद्योगिक विकास के क्षेत्रीय असंतुलन और बड़ा वर्ष 87-88 और 10 -11 के मध्य काल में पश्चिमी यूपी के रोजगार सुधार लोगों का हिस्सा 52% बढ़कर 74 फ़ीसदी हो गया ! जबकि बड़ी आबादी वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य , बुंदेलखंड का हिस्सा 48 फ़ीसदी से घटकर 26 रह गया औद्योगिक विकास की वृद्धि राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा और गाजियाबाद में नजर आई ।
अब बात करते हैं सरकार की। प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र दिल्ली के नजदीक है हवाई व अन्य सुविधाएं यात्रा सुविधाओं के साथ ही अन्य क्षेत्र में इस तरह की सुविधाएं अभी नहीं है। दूसरा प्रतिष्ठित प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने हरियाणा और राजस्थान से जुड़े हैं ।यह दिल्ली के आसपास निवेश करने को प्राथमिकता देते हैं इसलिए उनकी प्राथमिकता में एनसीआर रहता है ।पश्चिम के लोग अपने काम के प्रति समर्पित है। सड़क पर आकर अपना काम कर लेते हैं इसलिए पिछली सरकारों की प्राथमिकता ही पश्चिमी यूपी तक केंद्रित थी । अन्य क्षेत्र को लेकर पश्चिम की तरह जागरूक नहीं थे ।
पूर्वांचल में उद्यमशीलता की कमी को देखते हुए काफी कुछ कहा जा सकता है पूर्वांचल ने देश को कई प्रधानमंत्री दिए। बड़ी संख्या में मंत्री और नेता दिए लेकिन इन नेताओं ने पूर्वांचल बुंदेलखंड में उद्योगों के प्रोत्साहन के बारे में कुछ नहीं सोचा ।लोगों ने दोबारा जवाब भी नहीं मांगा। यह इलाके में बिजली की समस्या से जूझते रहे, क्षेत्र प्राकृतिक संपदा से भरपूर है लेकिन इसका लाभ लोगों को नहीं मिल सका। दूसरा यहां राष्ट्रीय स्तर की नेतागिरी ज्यादा है और उद्योगों के बारे में सोचने का समयकिसी के पास नहीं है हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार ने एयरपोर्ट विकास को लेकर बड़ा प्रयास शुरू किया है ।सर्वाधिक पूर्वांचल और बुंदेलखंड में हवाई यात्रा की सुविधाएं विकास के साथ ही मंडल स्तर पर भी इस दिशा में काम हो रहा है। अभिकरण को लेकर सरकार की सोच तो बदली ,पर अफसरशाही पुराने ढर्रे पर ही है सुविधाएं ऑनलाइन कर दी गई लेकिन इतनी तकनीकी चीजें बढ़ा दी गई है कि बिना दफ्तर गए आवेदन ही नहीं कर सकते ।अधिकारियों को उद्यमियों से मिलने के लिए समय नहीं है। सरकार ने भी एक एक अफसर को कई कई भाग पकड़ा दिए हैं जो समय ही नहीं देते ,वास्तव में सरकार बदल जाती है मंत्रियों नेता बदल जाते लेकिन अधिकारी नहीं बदलते अधिकारी उद्यमी को सरकारी चंगुल से बाहर नहीं जाने देना चाहते।
पिछले 5 साल में पांच काम प्राथमिकता पर होने चाहिए। पहला अधिकारी की मानसिकता बदलनी होगी और इंडस्ट्री को फ्रेंडली बनाना होगा ।सभी सेवाएं समय पर सहज व पारदर्शी तरीके से उपलब्ध होनी चाहिए। दूसरा पिछड़े क्षेत्रों में तेजी से रोड हवाई नेटवर्क काम हो। तीसरा उद्योगों के लिए भूमि उपलब्ध जमीन के इंतजार में था ।जमीन के अनुसार लाभ की गणना का फार्मूला इससे उद्योगों की बात उठाने वाला भी कोई होगा ।अभी उस दिन अपनी बात रखने के लिए या तो पढ़ना पड़ता है या फिर धक्के खाने पड़ते हैं ।
फिलहाल 5 महीने पहले हरिद्वार से लखनऊ और नोएडा तक की यात्रा की ,हाईवे सड़क और इसका निर्माण हो रहा है इसे देखकर महसूस हुआ कि यूपी उड़ने के लिए तैयार है ।आज परिवर्तन आया है बैठक में उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा तक पहुंचते हैं समय से पहले तहसीलदार वर्सेस मुख्य मुख्यमंत्री बड़ा बदलाव आया है ।पिछले 10 वर्षों में यहां ढांचागत सुविधाओं में जबरदस्त वृद्धि हुई है ।एक्सप्रेसवे और यातायात सुविधाएं बढ़ी है। बताते हैं एक्सप्रेस वे के दोनों ओर विकसित करने की योजना भी सामने रखी जा रही है इसलिए कहा जा सकता है कि इन सभी क्षेत्रों में औद्योगिक विकास बढ़ेगा।
यह भी सही है कि अभी तक औद्योगिक विकास के कुछ इलाकों में ही केंद्र गया था लेकिन इन इलाकों के जमीन मिलने आ रही थी इसलिए उद्योगों का विस्तार व उद्योग लगाने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में जाना होगा। बड़े उद्योग लगेंगे तभी खुलेगा , अब बात करते हैं कि सरकार की हमें विचार करना होगा कि पूर्वांचल बड़े उद्योग क्यों नहीं आए, वाराणसी तक 70 के दशक में रेल कारखाने के अलावा आज तक कोई इंडस्ट्री नहीं आएगी, सरकार चाहे जिसकी रही हो अच्छे से बनाई गई नीतियों को असली जामा पहनाने की स्थिति अच्छी नहीं रही ।पूर्वांचल बन गया उत्पादक बढ़ाए जाने की अपार संभावनाएं हैं लेकिन संबंधित पोर्टल पर आप निवेश के लिए आवेदन करते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि उससे जुड़े अधिकारी समस्या का समाधान लिए बैठे हैं अगर सर्किल रेट से 4 गुना दाम जमीन खरीद पाएंगे क्षेत्रों में काफी जमीन अनुपयोगी पड़ी है इन जमीनों पर उद्योग लगाने के लिए हमें किसी दूसरे से बेचने की अनुमति मिल जाए तो वहां पर उत्पादन और बढ़ेगा रोजगार के अवसरहै। पूर्वांचल में सड़कों का अच्छा नेटवर्क है कहा जाने लगा है ऐसा नहीं है कि स्थानीय स्तर पर निवेश नहीं है उन्हें बाहर से लाना ₹50करोड़ का निवेश कर सकने की क्षमता रखने वाले कई पूर्वांचल में ही मौजूदहै। उनके साथ बैठकर व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने का नियम बनाया जाए एक और समस्या है हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए बड़ी इंडस्ट्री को उन्नत तकनीक और कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है कुशल श्रमिक ऐसे चाहिए जो उन्नति हो रही तकनीक के अनुरूप अपने को तैयार करने में सक्षम हमें विचार करना होगा कि बरेली में आजादी से पहले आइटीआर और आजादी के बाद उनको फैक्ट्री न सिर्फ सिर्फ स्थापित हुई बल्कि सब फली फूली ।यह सब तब हुआ जब कनेक्टिविटी के संसाधन आज से कहीं कमजोर थे बेहतर रोड की तो बात छोड़िए रेल ट्रैक भी सिंगल लेन हुआ करता था ।
आज कनेक्टिविटी बेहतर होने के बाद 90% से ज्यादा बड़े उद्योग नोएडा और एनसीआर में चल रहा है तो इसकी मुख्य वजह छोटे शहरों में कुशल श्रमिकों का बेहद अभाव तकनीकी संस्थानों और विश्वविद्यालयों में जो लोग तैयार किए जा रहे हैं। वह पाठ्यक्रम उद्योगों की जरूरत के हिसाब से बिल्कुल भी नहीं है छोटे शहरों में पर्याप्त कुशल श्रमिक मिले इसके लिए हमें रणनीति बनानी होगी। इसी से प्रदेश के संतुलित औद्योगिक विकास हो पाएगा बड़ा कारण यह भी है बैंक छोटे शहरों की ओर रुख करने वाले उद्योगपतियों को आसानी से कर्ज मुहैया नहीं कराते जबकि एनसीआर में यह दिक्कत नहीं है ।
फिलहाल विकास के लिए आवश्यक है पर सिर्फ सड़कों के दम पर ही विकास आज तक नहीं हुआ है और न भविष्य में होगा ।एनसीआर दिल्ली से जुड़ा है दिल्ली में जगह उपलब्ध नहीं है इसलिए नोएडा में बड़े निवेशक वास्तविक निवेश तभी आता है जब सभी स्टॉकहोल्डर्स के बीच भरोसे का माहौल हो फिलहाल प्रदेश में इसकी कमी दिखती है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सकारात्मक प्रयास को कोई नकार सकता अगर जापान से कोई ₹1000 का निवेश आ जाए तो पूरी सरकारी मशीनरी उसके लिए जुड़ जाती है किसी भी तरह के निवेश करें और कहीं और ना जाने पाए ऐसी कोशिश करें लेकिन स्थानीय में ₹5000 के निवेश भी करने की बात कर रहे हैं तो घर की मुर्गी दाल बराबर वाली कहावत चरितार्थ हो रही ।
सरकार चाहे जिसकी रही हो किसी की नहीं सुनी जाती ,इसके लिए औद्योगिक नीति जाती है उनके ही सुझाव नहीं लिए जाते । सबसे ज्यादा जरूरी है राजनीतिक बॉस नौकरशाही और उद्योगपतियों के बीच लगातार संवाद हो ,जो बाधाएं आ रही हैं उनका रियल टाइम से समाधान हो ,निवेशक को यह महसूस कराया जाए कि नौकरशाही और पूरा सिस्टम आपकी समस्याओं के समाधान के लिए है।
Shandar jabardast jindabaad Sir
सत्य