तंगहाल न्याय व्यवस्था में सुधार कैसे हो

कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री ने कानून मंत्रियों के सम्मेलन में कहा था कि न्याय में देरी देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है या पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसा कहा था इसके पहले भी इसी वर्ष अप्रैल में उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में उन्होंने सरल सुलभ शीघ्र न्याय की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता जताई थी वास्तव में यह सिलसिला लंबे समय से कायम है शायद बीते 30 दशकों से अधिक समय से चली आ रही है।

कभी त्वरित न्याय की जरूरत बताई जाती है कभी न्यायाधीशों की नियुक्ति वाली कालोजियम व्यवस्था पर सवाल उठाए जाते हैं कभी लंबित मुकदमों के बोझ का उल्लेख किया जाता है कभी न्याय के महंगा होने पर चिंता व्यक्त की जाती है कभी अपनी भाषा में न्याय मांगा जाता है तो कभी न्याय में देरी को अन्याय बताया जाता है यह बातें इतनी बार दोहराई गई है कि अब लोग न केवल बोर होने लगे हैं बल्कि निराश भी कारण यह है कि न्यायिक तंत्र में कारगर सुधार के ठोस कदम उठाए जाने के बजाय कोरी और घिसी पिटी बातों से ही लोगों का मन बनाया जा रहा है जिस पर अब अंकुश लगाना चाहिए।

वास्तव में देखा जाए तो हमारे यहां न्याय दो तरीके से मिलता है पहला तरीका वह है जो कानून द्वारा है संसद जो कानून बनाती है उस कानून पर न्यायाधीश अमल करते हैं और आदेश सुनाते हैं एक यह व्यवस्था है दूसरी व्यवस्था में न्यायाधीशों के द्वारा सुनाए गए आदेश को कानून बताकर उस पर मुकदमे दाखिल होते हैं और आदेश सुनाए जाते हैं यह दोनों अलग-अलग चीजें हैं जिसको अब समझना होगा। किसी कानून पर सुनवाई के दौरान आदेश पारित होना स्वता कानून नहीं हो सकता लेकिन वकील इसे कानून बनाने पर लगे हुए हैं और इसी कानून के तहत ही सारे मुकदमे दाखिल होते हैं अगर यह मुकदमा दाखिल ना हो और कानून के हिसाब से चीजें चलें तो मुकदमों की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होगी जितनी आज की डेट में है।

होता यह है कि आदेशों का हवाला देकर के प्रतिदिन मुकदमे दाखिल हो रहे हैं और उसी के आधार पर आदेश पारित हो रहे हैं यह वैसे ही है जैसे कुरान शरीफ और हदीस , कुरान शरीफ में जो लिखा है उस का हवाला देकर के हदीस में कुछ चीजें जोड़ दी गई है और लोग हदीस का हवाला देते हैं यह कहते हुए कि कुरान शरीफ में लिखा है।ठीक उसी तरह कानून का हवाला देकर के आदेश नहीं सुनाई जा रहे हैं फला जज ने यह आदेश इस मामले में सुनाया था इसलिए यह नियम है आपको इस आदेश के तहत ही आदेश सुनाना है यह व्यवस्था न्यायपालिका में कायम है जिस पर कोई विचार नहीं करना चाहता।

कानून की दयनीय स्थिति होने में सबसे बड़ी भूमिका मुकदमों का समय तय ना होना सिविल मुकदमा कितने दिन में खत्म हो जाएगा अपराधिक मुकदमा कितने दिन में खत्म हो जाएगा छोटे बाद कितने दिन में खत्म हो जाएंगे आवश्यक प्रार्थना पत्र की सुनवाई कितने दिन में खत्म हो जाएगी यह तय होना चाहिए था लेकिन कानून में इसकी कोई व्याख्या नहीं है होता यह है कि लोग मुकदमा दाखिल करते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी न्याय का इंतजार करते हैं छोटे से बाद में जहां सिर्फ कोर्ट के अंदर फाइल एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट में जानी है वहां भी 2 महीने 5 महीने का समय लग जाता है आपराधिक मुकदमे में जमानत हो जाती हैं और बार-बार जमानत होती है लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि जमानत इसलिए होती थी कि जब तक आप पर मुकदमा चल रहा है तब तक आप दूसरा अपराध नहीं करेंगे लेकिन दर्जनों अपराध करने के बाद भी जमानत बदस्तूर जारी है।

सिविल मुकदमों की तो और हालत खराब है जो कानून बनाए गए हैं वह समीक्षा के तौर पर पुनः संशोधित होने चाहिए। प्रॉपर्टी पर नाम चढ़ाने का मामला कई पीढ़ियों तक चलता है वाद की स्थिति इतनी खराब है की कई पीढ़ियां निकल जाती है लेकिन निर्णय नहीं हो पाता ।तीन 3 महीने 6 महीने की तारीख मिलती है क्या ऐसे न्याय की प्रक्रिया सुधरेगी मुकदमों का कम से कम एक समय तो तय होता सिविल मुकदमे कितने दिन में खत्म हो जाएंगे अपराधिक मुकदमे कितने दिन में खत्म हो जाएंगे
तो उसे दो-तीन दिन हफ्ते भर में उसका निपटारा कर देना चाहिए उस पर 6 महीने की तारीख क्यों।

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