कोरोना महामारी ने विकसित देशों में स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत को उजागर कर के रख दिया है। कोरोना संकट ने साफ बता दिया है कि विकसित देशों की स्वास्थ्य सेवाएं मुनाफे के खेल पर आधारित हैं। इटली, स्पेन, ब्रिटेन सहित कई यूरोपीय देश और अमेरिका तक इस महामारी का मुकाबला कर पाने में नाकाम रहे हैं या जरूरत के हिसाब से तैयार नहीं हो पाए।
भारत में स्वास्थ्य की कल्पना
हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि स्वास्थ्य जीवन के सफलता की कुंजी है। किसी भी व्यक्ति को अगर जीवन में सफल होना है तो इसके लिए सबसे पहले उसके शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। व्यक्ति से राष्ट्र पर भी यह सिद्धांत लागू होता है। किसी देश के नागरिक जितने स्वस्थ होंगे; देश विकास सूचकांक की कसौटी ऊपर उतना ही अच्छा प्रदर्शन करेगा । भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है लेकिन जब बात देश में स्वास्थ्य सेवाओं के स्थिति की आती है तो हमारा सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है।
प्राचीन भारत में स्वास्थ्य को किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और सामाजिक कल्याण के रूप में परिभाषित किया गया था। इस प्रकार औषधीय चिकित्सा पद्धति ही केवल रोग और स्वतंत्र उपचार प्रणाली से संबंधित नहीं थी व्यक्ति के उपचार में विभिन्न संकल्पना यथा आहार, जलवायु, आस्था, संस्कृति आदि को शामिल करती थी।
भारत अमूल्य धरोहर वाली असीम विभिन्नता की भूमि है। इसमें हजारों सालों का पुराना इतिहास है। चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी यहां अनेक पद्धतियां व रिवाज हैं। अपने यहां कहते हैं कि –
- धन से दवाइयां तो खरीदी जा सकती हैं लेकिन उसी धन से स्वास्थ्य नहीं खरीदा जा सकता।
- जिस मनुष्य के पास अच्छा स्वास्थ्य नहीं है तो समझो उसके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है।
- जिंदगी जीने में और स्वस्थ जिंदगी जीने में बहुत फर्क होता है।
- स्वस्थ नागरिक देश के लिए सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं।
- शरीर के स्वास्थ्य को अच्छा रखना हमारा कर्तव्य है अन्यथा हम अपने मन को मजबूत और स्पष्ट रखने में सक्षम नहीं होंगे।
अपने यहां आयुर्वेदीय चिकित्सा विधि सर्वांगीण व्याप्त है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के उपरांत व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक दोनों स्वास्थ्य में सुधार होता है।
आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेदः।
अर्थात जो शास्त्र (विज्ञान) आयु (जीवन) का ज्ञान कराता है उसे आयुर्वेद कहते हैं।
समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः।
प्रसन्नात्मेन्न्द्रीयमनः स्वस्थ इत्यभिधीयते।।
जिसमें सभी दोष सम मात्रा में हों। अग्नि सम हो, धातु, मल और उनकी क्रियाएं भी सम (उचित) रूप में हों तथा जिसकी आत्मा, इंद्रिय और मन प्रसन्न (शुद्ध) हो उसे स्वस्थ समझना चाहिए।
मुनाफे की नियत ने जन्म दिया है निजी क्षेत्र को । निजी क्षेत्र का जन्म ही पूंजीवादी दृष्टिकोण या लाभकारी विचारधारा को लेकर हुआ है। इसलिए कोविड-19 के कारण उत्पन्न संकट की घड़ी में समाजवादी दृष्टिकोण से काम करना उनकी कोई अनिवार्यता या बाध्यता नहीं है। यही कारण है कि बहुत सारे निजी क्षेत्र के अस्पताल अनाप-शनाप पैसा बटोर रहे हैं। बात यह नहीं कि निजी क्षेत्र का योगदान सार्वजनिक स्वास्थ्य और सार्वजनिक सेवाओं में कम है बल्कि अंतर केवल इतना है कि लाभकारी विचारधारा से प्रेरित निजी क्षेत्र इन कार्यों को करने के लिए बाध्य नहीं है।
कोरोना महामारी समाप्त होने के बाद हम स्वास्थ्य संबंधी अपनी नीति नीयत और रणनीति पर गहराई से मंथन करें और विचार करें कि देश के कल्याण से सीधे जुड़े हुए सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत किया जाए और उसके प्रति लाभकारी दृष्टिकोण के बजाय कल्याणकारी दृष्टिकोण से विचार किया जाए।