पर्यावरण पर भारत की अनोखी पहल

 कहीं सूखा के कारण परेशान लोग, तो कहीं बाढ़ में डूबे गांव ,दुनियाभर में मौसम का यह अप्रत्याशित व्यवहार स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन का ही दुष्परिणाम है। मनुष्य ने विकास के रास्ते पर बढ़ते हुए जिस तरह से प्रकृति की अनदेखी की वह सभी को उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ रहा है। इन्हीं चिंताओं से पार पाने के लिए दुनिया भर के मित्र देश मिस्र के का 27 में जुटे हैं ।पिछले साल हुई बैठक में जिस तरह से भारत में आगे बढ़ कर पर्यावरण संरक्षण व जिओ नेट की दिशा में काम बढ़ाने की शपथ ली, वह सभी देशों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है।

 इससे पहले भी कई सकारात्मक बातें निकल कर आई थी कई दिशा में कदम बढ़ा रहे थे लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी है ।धरती के बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन का खतरा अब दरवाजे तक आ गया है ।अमीर देशों को समझना होगा कि वह अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ कर पूरी दुनिया को संकट में डाल रहे हैं ।इस खतरे का सामना करने के लिए उनकी तरफ से गरीब देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता मिलनी चाहिए ।इस साल जिस तरह से अमेरिका और यूरोप को अप्रत्याशित गर्मी का सामना करना पड़ा है उससे सभी को चेत जाना चाहिए ।

अध्ययन बताते हैं कि अभी नहीं, तो कभी नहीं ,जैसी हो जाएगी ।उम्मीद है कि आप 27 में सभी देश अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए किसी सकारात्मक परिणाम तक पहुंचेंगे ।देशों के साथ-साथ नागरिक के रूप में भी हम सभी को व्यक्तिगत स्तर पर यथासंभव प्रदूषण कम करने एवं पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में प्रयास करने का प्रयास करना होगा।औद्योगिक क्रांति के बाद से दुनिया का औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा है वैसे तो 18 सो 96 में ही रासायनिक विद्माते अहर्निश में कोयला जलाने से ग्रीन हाउस गैसों का स्तर बढ़ने की बात कह दी थी लेकिन तब तक किसी ने सोचा नहीं था कि यह इतने बड़े वैश्विक संकट की शुरुआत है।1992 में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क ऑर्गनाइजेशन ऑफ क्लाइमेट चेंज के नाम से एक संधि हुई इसमें जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने की दिशा में नियमों का खाका खींचा गया है ।इसी के तहत 1995 में कांग्रेस पार्टी के रूप में वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है तीन दशक में चर्चा भी खूब हुई और लक्ष्य तय किए गए लेकिन लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में उतना ही प्रयास नहीं हुआ जितना अपेक्षित था।

यूएन की रिपोर्ट कहती है कि 2030 में वैश्विक स्तर पर ऊर्जा जरूरतों की बिजली की हिस्सेदारी बढ़ा नहीं होगी ।2020 की तुलना में दोगुने से ज्यादा करने का लक्ष्य सीमेंट उद्योग में होने वाले कार्बन उत्सर्जन को भी कम करने का लक्ष्य रखा गया है निश्चित तौर पर इसके लिए जिस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है वह देशों में नहीं दिख रही है कोयला और जीवाश्म इंधन ग्रीन हाउस गैसों के सबसे बड़े कारण हैं ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता स्तर की जलवायु परिवर्तन के मूल में है इन गैसों के बढ़ने के कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है जो दुनिया भर में संकट का कारण बन रहा है कि इस साल की आई रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक बिजली उत्पादन में कोयले का प्रयोग खत्म करना होगा ।गैस की हिस्सेदारी भी 2030 तक 17% और 2040 -50 के बीच सुनने पर लाने की जरूरत होगी हालांकि वर्तमान स्थित इस बात की गवाही नहीं दे रही है। रिपोर्ट में सार्वजनिक परिवहन और साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा देने की बात कही गई। यातायात में छोटे व निजी वाहनों की हिस्सेदारी भी कम करने की जरूरत बताई गई है।

रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के कारण पिछले 100 साल में 10 वर्षों में सबसे गर्म 2001 के बाद से ही है ।ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेज बारिश बाढ़ सूखता चक्रवात जैसी आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है ।नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक यदि अभी नहीं संभले तो 2080 तक नोबेल वार्मिंग के कारण पौधों की आधी और जीवो की तिहाई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगे ।बर्फ पिघल रही है, ग्लेशियर घट रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है इससे बहुत से तटीय इलाकों के डूबने का खतरा बढ़ा है ।समुद्री जीवन की कई प्रजातियां पर भी खतरा बना । ग्लोबल वार्मिंग के कारण खेती प्रभावित हो रही है जिससे कई क्षेत्र में खाद्यान्न संकट की स्थिति बनी हुई है।

भारत इन 175 देशों में से हैं जिन्होंने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं । जिस तरह से भारत में 2070 तक नेट जीरो कलश रखा वह भी अनुकरणीय रहा है इस दिशा में देश में जीवन जीने की स्वस्थ एवं पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाने के रास्ते पर कदम बढ़ाया है। पांच शपथ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से दिया गया पंचामृत का संदेश भी बहुत अहम है। चीन और अमेरिका के बाद भारत सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाला देश है ।यदि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध युद्ध को जीतना है तो उसमें भारत की भूमिका बहुत अहम होगी। दुनिया को भारत को प्रयासों से सीखना होगा कि उनका अनुकरण करना चाहिए। भारत सरकार में नवीनीकरण ऊर्जा तकनीकों के विकास में सहयोग के लिए नीति स्तर पर कई पहल की है।

 देश में ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी बनाई गई है और राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण कानून 2001 में संशोधन भी किया गया है ।इससे औद्योगिक क्षेत्र का कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी हालांकि कोयले का प्रयोग अभी भी चुनौती बना हुआ ।

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