आरक्षण को लेकर नया आयाम शामिल

सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्य पीठ ने  बहुमत से संविधान के 103 में संशोधन को सही ठहराया है यह संशोधन जनवरी 2019 में किया गया था ।संशोधन को चुनौती दी गई थी, जिसे अगस्त 2020 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा गया था। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी , बेला त्रिवेदी ,जस्टिस एसबी पार्टी वाला में संविधान के 103 में संशोधन को वैद्य माना है इन तीन जजों ने कहा कि इस संशोधन से संविधान का मूल ढांचा प्रभावित नहीं होता। जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और चीफ जस्टिस यूयू ललित ने संशोधन को नहीं मानते हुए फैसला दिया है।

इस फैसले के बाद अब राजनीतिक दलों में विवाद की स्थिति है ।ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भाजपा ने स्वागत किया है और कहा है कि अनारक्षित वर्ग गरीबों के लिए 10% आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा जाना ठीक है सामाजिक न्याय के दिशा में यह एक बड़ा कदम है इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए भाजपा के एक महासचिव ने कहा कि यह फैसला देश के गरीबों को सामाजिक न्याय दिलाने के अपने मिशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक जीत है ।

दूसरी ओर कांग्रेस में भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है साथ ही जातिगत आधारित जनगणना कराने की सरकार से मांग की है काग्रेस के एक प्रवक्ता ने जातिवादी करार देते हुए विरोध किया है। अदालत 50% से अधिकतम सीमा का हवाला देते हुए एसटी, एससी और ओबीसी आरक्षण के कोटे को बढ़ाने से इंकार करता रहा लेकिन आर्थिक रूप से गरीब तबके के आरक्षण में इसकी अनदेखी कर दी उदित राज के अनुसार निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट की मानसिकता को दर्शाता है।

यह पहला मौका है जब आर्थिक आधार पर आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है अभी तक यही और धारणा थी कि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता ।आरक्षण के आधार सिर्फ सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन ही हो सकता है और कोर्ट से आरक्षण को संवैधानिक ठहराने के लिए इस तरह के आरक्षण को पहले इसी दायरे में रखना पड़ता है लेकिन अब फैसले से व्यवस्था बदल गई है जस्टिस आरक्षण के सही ठहराते हुए फैसले में लिखा है कि भविष्य में अन्य वर्गों को जोड़ने का रास्ता बनता नजर आता है ।जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि आरक्षण, गैर बराबरी को बराबरी पर लाने का लक्ष्य हासिल करने का उपकरण किया जा सकता है क्लास में शामिल किया जा सकता है।

अब बात करते हैं संशोधन की 103 में संशोधन के तहत संविधान में अनुच्छेद 15 से और 16 छह को जोड़ा गया था जिसके तहत गैर पिछड़ा व गैर sc-st श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर को 10% तक आरक्षण देने की व्यवस्था की गई दूसरे शब्दों में कहें तो इस संविधान संशोधन के माध्यम से कथित अगड़ी जातियों व सामान्य वर्ग के गरीब तबकों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। जिस पर संविधान के संशोधन को चुनौती दी गई और कहा गयाकि ढांचा परिवर्तित होता है सुप्रीम कोर्ट के केसवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे की बात कही थी इसमें कहा गया था कि संविधान में कुछ बातों को बदला नहीं जा सकता संविधान का विरोध करने वालों की दलील थी कि संविधान में सामाजिक स्तर पर वर्गों के विशेष सुरक्षा देने की बात कही गई है जबकि 103 वां संशोधन आर्थिक आधार पर विशेष सुरक्षा का प्रावधान करता है।

यहां तक लाभ की बात है तो उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती में यह आरक्षण मिलता है। इस संशोधन के तहत राज्यों को भी आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने का अधिकार दिया गया ।आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के निर्धारण के लिए 31 जनवरी 2019 को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने नोटिफिकेशन जारी किया था इसके तहत व्यक्ति और उसके परिवार की आय ₹800000 से कम हो गई है और परिवारों से बाहर रखने की व्यवस्था की गई है। अक्टूबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आठ लाख सालाना आय का निर्धारण का आधार पूछा था। इस पर सरकार ने कहा कि वह इस सीमा पर पुनर्विचार करेगी इसके लिए 3 सदस्य कमेटी गठित की गई ।इस साल जनवरी में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस सीमा को सही माना था।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला आरक्षण की दिशा और दशा बदलने वाला है। फैसले से भविष्य में आरक्षण की गणित भी बदल सकती है ।इसका व्यापक राजनीतिक और सामाजिक असर होगा ।अभी तक जातियों तक सीमित रहे आरक्षण में नए वर्ग और नए आयाम जुड़ने के रास्ते खुलते नजर आ रहे हैं ।अगर फैसले को गहराई से देखा जाए तो सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण पर मोहर लगाने वाले फैसले में जजों ने सरकार को आरक्षण को लेकर आगे की नीति पर सोचने विचारने की नसीहत दी है।

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