ऐसे ही नहीं बना राष्ट्रपति भवन

राष्ट्रपति भवन एक बार फिर चर्चाओं में है। पांच वायसराय इस भवन में रहे श्री राजगोपालाचारी के बाद सारे राष्ट्रपति इसमें रहते आ रहे हैं और सभी ने इस पर अपना कुछ ना कुछ असर भी छोड़ा है ।श्री राजगोपालाचारी ने यहां कुछ मैदान को खेतों में बदल दिया और अनाज उगाया ।आर वेंकटरमन को कई मशहूर पेंटिंग्स लगाने के लिए जाना जाता है तो राजेंद्र बाबू व जाकिर हुसैन अपने साथ चरखा भी ले आए थे। राजेंद्र बाबू ने मुगल गार्डन को सबसे पहले जनता के लिए खुलवाया था और तब से परंपरा शुरू भी हो गई। प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन को स्मार्ट बना दिया, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ,स्टूडियो अपार्टमेंट, रेजिडेंशियल ब्लॉक्स, आयुष वेलनेस सेंटर, इंटेलिजेंस ऑपरेशन सेंटर, गिफ्ट मैनेजमेंट सिस्टम आदि के काम है। ए पी जे अब्दुल कलाम को औषधि पौधों को समर्पित आध्यात्मिक बाग का श्रेय जाता है।

राष्ट्रपति भवन जिसकी परिकल्पना अंग्रेजों ने भारत में ब्रिटिश सत्ता के केंद्र वायसराय हाउस के तौर पर की थी। देखा जाए तो भारतीय इतिहास की यादों में सबसे दिलचस्प संग्रहालय अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति को दबाने बहादुर शाह जफर के दोनों शाह जाधव को मारने और उनको रंगून निर्वासित करने के बाद अंग्रेजों के बीच लाल किला जामा मस्जिद को ढहाने से लेकर 200 अमीरों का घर तोड़ने तक की योजना बनी ।समय के साथ कोलकाता के क्रांतिकारियों के हमले अंग्रेजों के व्यापार के बजाय भारत पर शासन करने की इच्छा और रेलवे के जाल के चलते पुरानी दिल्ली को दुरुस्त करने के बजाय नई दिल्ली बसाने का फैसला लिया गया ।मुगल छाया से निकलकर एक बिल्कुल नया शहर की ताकत का केंद्र वायसराय हाउस था इसलिए सबसे ज्यादा ध्यान उसी पर दिया गया जो बाद में राष्ट्रपति भवन बना।

नई दिल्ली शहर बनाने का ऐलान हुआ ,दिल्ली के तीसरे दरबार में भी ट्रेन के राजा जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी ने 15 दिसंबर 1911 को नई दिल्ली शहर की आधारशिला रखी ।किंग्सवे कैंप में जिस 640 किलोग्राम चांदी के सिंहासन पर इस दरबार में राजा बैठे थे वह अभी राष्ट्रपति भवन में रखा हुआ है। तमाम राजा महाराजाओं के साथ मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह के दादा सुजान सिंह भी अपने दोनों बेटों के साथ यहां मौजूद थे ।बाद में राष्ट्रपति भवन के प्रांगण सहित उनको दिल्ली में 28 प्रमुख भवन बनाने का मौका मिला ।शहर बनने तक शहर उत्तरी दिल्ली के सिविल लाइंस में राजधानी की अस्थाई इमारतें खड़ी कर दी गई ।

राजधानी बनते ही राजनैतिक गतिविधियां यहां तेज हो गई। कई अखबार यहां से शुरू हो गए ।होम रूल लीग का दफ्तर बन गया। 1917 में कांग्रेस ने भी अधिवेशन आयोजित के क्रांतिकारी गतिविधियां, तो लॉर्ड हार्डिंग के हाथी पर पहले ही दिन बम फेंककर रासबिहारी बोस ने शुरू कर दी थी ।नई दिल्ली के ले आउटसाइड आदि के बारे में फैसले के लिए भारत सचिव ने जो कमेटी बनाई उसमें कैप्टन चेयरमैन थे ।इंडियन सदस्य होल्डिंग को लूट के नाम था कि अभी तक उसने कुछ बड़ा नहीं बनाया है जबकि उसके चाहने वाले कहते थे कि महंगी इमारतें बनाने में महारत हासिल है। यह बहस छिड कि नई दिल्ली लाल किले के उत्तर में हो या दक्षिण में क्योंकि तीनों दिल्ली दरबार में हुए थे, लेकिन उत्तर में यमुना के प्रकोप का डर था कि कमेटी ने रिपोर्ट जिस पर बसा था गांव रायसीना और मालचा। पुराना किला निजामुद्दीन और हुमायूं मकबरा जैसी नई दिल्ली पुरानी दिल्ली से जोड़ सकती थी । हॉर्न डिक्स मालचा देखने गया इलाके में चाणक्यपुरी और नाराएणा का हिस्सा था। नारायणा का नाम भी चर्चा में आया लेकिन लोगों ने कहा कि इसे दिल्ली नहीं माना जाता।

लुटियंस को जिम्मेदारी मिली वायसराय हाउस बनाने की, जिसे स्वतंत्रता दिवस के दिन उसका नाम गवर्नमेंट हाउस और फिर राष्ट्रपति भवन रख दिया गया। लुटियंस के सुझाव पर उसके एक सीनियर हर्बर्ट बेकर को बुलाया गया, ताकि बाकी महत्वपूर्ण इमारतों जैसे साउथ ब नार्थ ब्लाक को बनाया जा सके ।हर्बर्ट बेकर ने सचिवालय के इन दोनों इमारतों को भी रायसीना हिल में ही बनाने की इजाजत ले ली ।वहीं एक गलती लुटियन से हो गई क्योंकि विजय चौक से आज आपको राष्ट्रपति भवन ठीक से नहीं दिखता तो इसकी वजह दिल्ली हिस्ट्री एंड प्लेसेस ऑफ इंटरेस्ट में प्रभात चोपड़ा लिखती हैं। ब्रेकर की योजना के चलते वायसराय हाउस को पूरे 400 मीटर पीछे खिसका दिया गया है जो बहुत बाद में जाकर लुटियंस को पता चला जिसके चलते दोनों में काफी विवाद हुआ लेकिन लुटियंस की किसी ने नहीं सुनी और सालों तक दोनों में बात नहीं हुई।

अब लुटियन को तमाम सुझाव आने लगे। किंग चार जने भी सुझाव दिया कि इसे मुगल स्टाइल में बनाया जाए ।शायद इसी के चलते यहां के एक बाग को मुगल गार्डन कहा जाता है। हालांकि लुटियंस ने कई महीने तक भारत की कई ऐतिहासिक इमारतों का दौरा किया खासतौर पर राजपूत और मुगलों की ताजमहल उसको पसंद नहीं आया लेकिन उसके बाद पसंद आए थे। उसने indo-european ढंग से इसे डिजाइन करने का सुझाव खारिज कर दिया। उसने राजपूतों और मुगलों के प्रतीकों को मिलाया इसलिए उसे पानी से जुड़ी संरचनाएं नहर और फुहारे इस्तेमाल किए ।मुगलों के पसंदीदा गुलाबी बलुआ पत्थर और राजपूतों के पसंदीदा धोली क्रीम बलुआ पत्थर को ही राष्ट्रपति भवन में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया। वहां पर कई रंगों के 10000 मीटर घने मार्बल इस्तेमाल हुए लेकिन केवल गहरे चॉकलेटी मार्बल को खासतौर पर इटली से मंगाया गया था। बाकी सफेद गुलाबी मार्बल ,कान्हा हरा मार्बल अजमेर से सिटी मार्बल जोधपुर से पीला मार्बल जैसलमेर से आया था।

राष्ट्रपति भवन का दरबार आजकल पुरस्कार समारोह के लिए मशहूर है उसके पास बरामदे में एक बैल की मूर्ति है जिसे अशोक के स्तंभ से लिया गया है और दरबार हाल के अंदर बुद्ध की प्रतिमा लुटियंस की देन नहीं बल्कि एक प्रदर्शनी में यहां 1947 में लगाई गई थी और बाद में वह यही की हो गई इसके पास एक सिंघासन कच्ची बना है जिसमें वायसराय वह उसकी पत्नी के दो सिंग आसनों को रखे गए हैं। मेहमानों के लिए नालंदा और द्वारका नाम से दो साइड बनाए गए हैं। फर्नीचर भारतीय लीक लकड़ी से ही बनाया गया जबकि शानदार झूमर यूरोप से मंगाए गए हैं। पर्दे फ्रांस से थे जिसको बाद में भारतीय कपड़ों में बदल दिया गया वहीं कालीन व्यवस्था शुरू से ही भारत की थी।

इस प्रकार देखा जाए तो राष्ट्रपति भवन के निर्माण में बहुत सी चीजें खुलकर सामने आई और आज जो राष्ट्रपति भवन आप देख रहे हैं वह सहज ही नहीं बना बल्कि उसके लिए बहुत तपस्या और मेहनत की गई |

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