राहुल गांधी के साथ यह तो होना ही था।

पिछले कई दिनों से यह विवाद तूल पकड़े हुए हैं कि राहुल गांधी के मामले में भाजपा ने जरूरत से ज्यादा तेजी दिखाई है ।तो यहां यह बात कह देना उचित होगा कि इस तरह के काम पहले कांग्रेस कार्यकाल में हुए हैं और भाजपा सिर्फ उसका अनुसरण कर रही है। कुछ नया नहीं कर रही है। इसके कई कारण है इससे राजनीति में जहां सुचिता आएगी वही राजनीति एक नई दिशा की ओर भी बढ़ेगी कुछ और पहलू है जिन पर हमें गौर कर लेना चाहिए।

पहली बात! राहुल गांधी के पास भी बड़े-बड़े वकील थे।फिर भी उन्हें मानहानि के मामले में 2 साल की सजा हुई। केस दायर करने वाले ने साफ कहा था मेरी व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है ।मोदी समाज को अपमानित किया है माफी न मांगे तो खेद ही व्यक्त कर दे! सजा देने के पहले जज ने भी उनसे कहा था कि इतनी जिद ठीक नही। पर राहुल गांधी नही माने, खेद व्यक्त करना भी उचित नहीं समझा! सजा तो मिलनी ही थी। इतना घमंड किसी भी राजनेता को नहीं होना चाहिए, जिस तरह हलवाई का लड़का हलवाई नहीं होता ।उसी तरह राजा का बेटा राजा नहीं हो सकता ।यह प्रथा अब खत्म हो चुकी है अगर राहुल गांधी यह सोचते हो कि जैसे उनके परिवार में अब तक प्रधानमंत्री बनते आए हैं उसी तरह वह भी प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो यह उनकी भूल है अब ऐसा नहीं होने वाला।

दूसरी बात! 2 साल की सजा मिलते ही लोकसभा की सदस्यता रद्द हो जाना क्या उचित है? इस बात पर वरिष्ठ राजनेता गुलाम नबी आजाद ने बहुत अच्छा तर्क दिया है। उन्होंने कहा की 2 साल की सजा के बाद तत्काल संसदीय चले जाना ठीक नही है। ऊपरी अदालत के फैसले बगैर इस पर अमल करना अनुचित है। पर क्या करें यह कांग्रेस के समय की ही परंपरा है, कानून है। फिर यह बात उन्हें तब सोचनी चाहिए थी जब उन्होंने दस्तावेज को संसद के अंदर फड़ा थे यह कानून उन्हीं जैसे लोगों के लिए था जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। अब इस पर सरकार फिर से विचार करने वाली नहीं है और ना ही इस पर कोई  संशोधन ले आएगी।

तीसरी बात! अब जब राहुल गांधी को सजा हो गई तो सांसद भवन से उनकी रवानगी तो तय थी। पर सवाल जल्दबाजी पर उठाया जा रहा है। इस पर मोदी सरकार की भूमिका होने की बात भी कही जा रही है। इस बात पर मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि अब वह दौर चला गया जब राजनीति में केवल मतभेद होते थे मनभेद नहीं। आजकल जिस तरह की निजी टिप्पणियां एक दूसरे पर की जा रही है ऐसे में समय आने पर हाथ थामने की उम्मीद भी किसी को नहीं की जानी चाहिए। अगर किसी को भूल है कि वह इसका राजनीतिक लाभ ले लेगा, तो आज के समय में यह बड़ी मुश्किल काम है समय बदल रहा है इसलिए लोगों को भी बदल जाना चाहिए।

फिलहाल पिछले कुछ दिनों में राहुल गांधी ने जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार निजी टिप्पणियां की है। उन्हें चोर तक कहा है। हालांकि चोर वाले बयान पर वो माफी मांग चुके है। फिर भी बात दिल में तो रह जाती है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को किसी भी तरह से राहत की उम्मीद भाजपा या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं की जानी चाहिए। ये मोदी शाह का दौर है! मौका मिलते ही वो दबोच लेंगे। वैसे भाजपा सरकार या मोदी जी कुछ नया नहीं कर रहे। सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस ने भी कई दफा विपक्षी नेताओं के साथ यही किया था। बस वक्त ने पलटी मारी है।

इस पूरे प्रकरण में जो बात खुलकर सामने आई है वह यह है कि कोई भी राजनेता आप किसी दूसरे की बुराई नहीं करेगा। उस पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करेगा और किसी तरह का लाभ लेने की कोशिश उसके परिवार को लेकर या उसकी जाति को लेकर करने से पहले 10 बार सोचेगा।

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