संयुक्त राष्ट्र संघ में अटल के उद्गार।

आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में आम चुनाव हुए और अटल बिहारी वाजपेई जनता पार्टी की सरकार के विदेश मंत्री बने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 32 में अधिवेशन को उन्होंने हिंदी में संबोधित किया। यह पहला अवसर था जब संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी की गूंज सुनाई दी। संयुक्त राष्ट्र दिवस 24 अक्टूबर को दिए गए इस भाषण में अटल बिहारी वाजपेई द्वारा दिए गए भाषण के अंश हैं

इस भाषण में अटल बिहारी वाजपेई ने कहा था भारतवर्ष में हाल में ही एक ऐतिहासिक और अहिंसात्मक क्रांति हुईहै। चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मानव की दुर्गम में आत्मशक्ति का परिचय दिया और एक स्वतंत्र और उन्मुक्त समाज में अपनी आस्था की पुष्टि की ,उन्होंने लोकतंत्र को नष्ट करने के तामसी और निरंकुश शक्तियों के जूता पूर्ण प्रश्नों को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया। हमारे देश की 60 करोड़ जनता के लिए मासकीय क्रांति स्पष्ट व दूरगामी महत्व रखती है साथ ही समस्त संसार के स्वतंत्र प्रेमी लोगों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

 उन्होंने कहा हमारी जनता ने निर्भीक होकर उन मूल सिद्धांतों जीवन मूल्यों तथा आकांक्षाओं को पोस्ट किया ,जिन पर लगभग 30 वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की आधारशिला रखी गई थी ।भारत के लोगों ने अपनी खोई हुई स्वतंत्रता और मूलभूत अधिकार द्वारा प्राप्त कर ली है ।भारत की जनता की ओर से राष्ट्र संघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं। महासभा के इस 32 वे अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्र संघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुनः व्यक्त करना चाहता हूं हमारा विश्वास है कि राष्ट्र संघ विश्व में शांति और सुरक्षा बनाए रखने और राष्ट्रों के बीच सहयोग के माध्यम से न्याय और समानता पर आधारित शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का उपकरण बनेगा।

जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल 6 मास हुए हैं फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय है भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुनः प्रतिष्ठित हो गए हैं। जिस भाई और आंतक के वातावरण में हमारे लोगों को घेर लिया था अब वह दूर हो गया है ।इसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे यह सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी स्वतंत्रता का अब भी इंसान कभी हनन नहीं होगा।

अटल बिहारी ने कहा कि अध्यक्ष महोदय मैं भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ में नया हूं लेकिन मेरा देश नया नहीं है इस संस्था की स्थापना के समय से ही भारत का इस से निकट संबंध रहा है वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है ।भारतवर्ष में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है आने का एक प्रश्न और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के रूप में ईश्वर के साकार होने की संभावना है क्योंकि राष्ट्रीय संघ की सदस्यता लगभग विश्वव्यापी हो गई है और वह 400 करोड़ लोगों का जो विभिन्न जातियों रंगों और संप्रदायों के हैं भारत सभी का प्रतिनिधित्व करता है फिर भी यह आवश्यक है कि राष्ट्र संघ के 1 सरकारी प्रतिनिधि मंडलों के मिलन का मंच मात्र ना रहे, हमें इसे इस लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए कि किस प्रकार राष्ट्रों की या महासभा मानवता की सामूहिक चेतना और इच्छाशक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाली मानव की संसद रूप ले सके।

उन्होंने कहा मैं राष्ट्र की सत्ता और माता के बारे में नहीं सोच रहा हूं ।आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति के लिए या बात अधिक महत्व रखती है हमारी सफलता और असफलता केवल एक ही मापदंड से माफी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज वस्तुतः हर नर नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा का अस्तित्व देने के लिए प्रयत्नशील हैं ।भारत में सदा ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों में अनावश्यक रक्तपात और हिंसा का विरोध किया है हम अहिंसा में आस्था रखते हैं और चाहते हैं कि विश्व के संघर्षों का समाधान शांति और समझौते के मार्ग से हो पराधीनता के अंधकार कौन काल में भारत का आधारभूत सिद्धांतों पर था ।वह सिद्धांत है पर निवेशक दमन का तीव्र विरोध और रंगभेद के प्रत्येक रूप तथा मानव अधिकारों के प्रत्येक हनन की प्रकृति है इन सिद्धांतों के प्रति स्वतंत्र भारत की श्रद्धा आज और भी गहरी हो गई।

उन्होंने कहा भारत सब देशों से मैत्री चाहता है और किसी पर प्रभुत्व स्थापित नहीं करना चाहता। भारत ना तो आणविक शस्त्र शक्ति है और ना ही बनना चाहता है ।नई सरकार ने अपने संदिग्ध शब्दों में इस बात की पुनः घोषणा की है हमारी कार्य सूची का एक सर्व स्पर्शी विषय जो आगामी अनेक वर्षो और दशकों में बना रहेगा ,वह है मानव का भविष्य में भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देता हूं कि हम एक विश्व के आदर्श की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के इस बयान का संयुक्त राष्ट्र संघ पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा और जब तक वह जीवित रहे तब तक संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनकी उपेक्षा कभी नहीं की।

Leave a Reply