भाजपा को लेकर विपक्षी एकमत नही


जैसे-जैसे 2024 का चुनाव करीब आ रहा है वैसे-वैसे पार्टियों के रंग बदलने लगे हैं भारतीय जनता पार्टी में अंतर्विरोध है तो सभी विपक्षी दल उसे देख कर के एक होने का प्रयास कर रहे हैं या प्रयास कितना सफल होगा यह तो आने वाला भविष्य बताएगा लेकिन प्रधानमंत्री पद को लेकर के विपक्ष में एकजुटता नहीं दिख रही है सभी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं लेकिन अपने कार्यकाल में उन्होंने कौन-कौन से काम किए हैं इसका बखान नहीं करना चाहते।

भाजपा विरोधी दलों को एक नए सिरे से एकजुट करने की कोशिश तेज हो गई है इन दिनों की कमान नीतीश कुमार हाथ में लेते दिख रहे हैं इनका दावा है कि यदि विपक्षी दल एक हो जाए तो आगामी चुनाव में भाजपा 50 सीटों पर सिमट सकती है लेकिन फिलहाल तो ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि कांग्रेस ने पीएम पद के लिए जहां तक है राहुल गांधी का नाम लगभग तय कर रखा है वहीं नीतीश कुमार में उन्हें कोई इंटरेस्ट नहीं है यही हाल केजरीवाल ,ममता बनर्जी का है दोनों प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं अब समझ में नहीं आता कीवी पक्षी एकजुट होंगे कैसे।

         अब बात करते हैं नीतीश कुमार की जब से महागठबंधन से हाथ मिलाया है तब से उनके सहयोगी और समर्थक उन्हें प्रधानमंत्री का उपयुक्त प्रत्याशी बताने लगे हैं इसमें हर्ज नहीं लेकिन मुश्किल यह है कि किसी अन्य विपक्षी दल पीएम प्रत्याशी के रूप में उनका नाम आगे बढ़ाने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं पिछले कुछ दिनों से मुलाकात करने तेलंगाना के मुख्यमंत्री पटना गए और प्रधानमंत्री प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम आगे करने में हिचक दिखाइ। उनके पीछे उनकी आकांक्षाओं की स्वयं पीएम पद के दावेदार को एकजुट करने की कोशिश करते रहे हैं इससे पहले भी ऐसी कोशिश व कुछ अन्य नेता भी कर चुके हैं।   

अब बात करते हैं कांग्रेस केजरीवाल वह ममता बनर्जी के कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी सर्वमान्य प्रत्याशी हैं और पीएम पद के दावेदार इसी तरह केजरीवाल दिल्ली और पंजाब हथियाने के बाद अपने आप को पीएम पद का प्रत्याशी मानने लगे हैं उनको विश्वास है कि गुजरात में उनकी सरकार बन जाएगी और अन्य प्रदेषों में भी सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हैं इसी तरह ममता बनर्जी दो बार मुख्यमंत्री होने के बाद पीएम पद का ख्वाब देख रही हैं वह केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं और पश्चिमी बंगाल में अच्छा खासा प्रभुत्व है लेकिन विपक्षी दल इन तीनों के नाम पर एकजुट होने को तैयार नहीं और यह हमेशा ही होता है कि जब जब विपक्ष एकजुट होने का प्रयास करता है तो पीएम पद पर उसकी सहमति नहीं बनती है हर बार ऐसा ही देखा गया है अब देखिए आगे क्या होता है।             

      अभी 2024 के आम चुनाव में अभी देर है इसलिए यह कहना कठिन है कि  एकता की क्या सूरत बनेगी लेकिन अभी तक का अनुभव यही बताता है कि विपक्ष एकजुट होने की चाहे जितनी कोशिश करें यह नाकाम ही रहता है । एकता के लिए आवश्यक केवल यह नहीं कि भाजपा विरोधी दल पीएम पद के दावेदार को लेकर एकमत हो बल्कि यह भी जरूरी है कि ऐसा न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करें जो देश की जनता को आकर्षित कर सके अभी तक ऐसा कोई कार्यक्रम या विमर्श दूर-दूर तक नजर नहीं आता यदि कुछ नजर आता है तो केवल मोदी हटाओ का नारा। इससे बात बनने वाली नहीं हमको कुछ और करना होगा जिससे जनता उनके पक्ष में वोट कर सकें। 

फिलहाल प्रधानमंत्री पद पर अभी तक प्रधानमंत्री मोदी से मजबूत प्रत्याशी कोई नहीं है जनता जिस तरह उनकी सुनती है उस तरह से सुनाने वाला कोई नेता वर्तमान समय में नहीं है क्षेत्रीय नेता है जो उद्देश के हित की नहीं स्वहित की बात करते हैं और ऐसे लोगों को भारत की जनता कभी स्वीकार नहीं करती विपक्ष का एकजुट ना होना देश के लिए घातक है क्योंकि इससे सत्ता पक्ष को मनमानी करने की आदत पड़ जाती|

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